GIRISH BILLORE'S WORLD |
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06 March 2009
29 November 2008
जियो हजारों साल, साल के दिन हो पचास हजार
आज महाशक्ति के वरिष्ठ सदस्य और हिन्दी चिट्ठाकारी के नामी चिट्ठकार श्री गिरीश बिल्लोरे '' मुकुल'' जी का जन्म दिवस है। गिरीश जी महाशक्ति समूह ब्लाग के स्थापना के समय से जुड़े हुये है और अपना आशीष और मार्ग दर्शन हम सभी को निरन्तर प्रदान करते रहते है। जन्मदिवस पर हम सभी लोग यही कामना करते है कि वे हमेशा इसी प्रकार अपना स्नेह हम पर बनाये रखे। महाशक्ति समूह उन्हे उनके 45 जन्म दिवस पर बधाई देते है और कामना करते है कि जियो हजारों साल, साल के दिन हो पचास हजार
27 October 2008
दीपावली की शुभकामनाएं :एक चिंतन

दीपावली की धूमधाम भरी तैयारीयों में इस बार श्रीमती गुप्ता ने डेरों पकवान बनाए सोचा मोहल्ले में गज़ब इम्प्रेशन डाल देंगी अबके बरस बात ही बात में गुप्ता जी को ऐसा पटाया की यंत्र वत श्री गुप्ता ने हर वो सुविधा मुहैय्या कराई जो एक वैभव शाली दंपत्ति को को आत्म प्रदर्शन के लिए ज़रूरी था । इस "माडल" जैसी दिखने के लिए श्रीमती गुप्ता ने साड़ी ख़रीदी गुप्ता जी को कोई तकलीफ न हुई । घर को सजाया सवारा गया , बच्चों के लिए नए कपडे यानी दीपावली की रात पूरी सोसायटी में गुप्ता परिवार की रात होनी तय थी । चमकेंगी तो गुप्ता मैडम,घर सजेगा तो हमारी गुप्ता जी का सलोने लगेंगे तो गुप्ता जी के बच्चे , यानी ये दीवाली केवल गुप्ता जी की होगी ये तय था । समय घड़ी के काँटों पे सवार दिवाली की रात तक पहुंचा , सभी ने तय शुदा मुहूर्त पे पूजा पाठ की । उधर सारे घरों में गुप्ता जी के बच्चे प्रसाद [ आत्मप्रदर्शन] पैकेट बांटने निकल पड़े । जहाँ भी वे गए सब जगह वाह वाह के सुर सुन कर बच्चे अभिभूत थे किंतु भोले बच्चे इन परिवारों के अंतर्मन में धधकती ज्वाला को न देख सके ।
ईर्ष्या वश सुनीति ने सोचा बहुत उड़ रही है प्रोतिमा गुप्ता ....... क्यों न मैं उसके भेजे प्रसाद-बॉक्स दूसरे बॉक्स में पैक कर उसे वापस भेज दूँ .......... यही सोचा बाकी महिलाओं ने और नई पैकिंग में पकवान वापस रवाना कर दिए श्रीमती गुप्ता के घर ये कोई संगठित कोशिश यानी किसी व्हिप के तहत न होकर एक आंतरिक प्रतिक्रया थी । जो सार्व-भौमिक सी होती है। आज़कल आम है ............. कोई माने या न माने सच यही है जितनी नैगेटीविटी /कुंठा इस युग में है उतनी किसी युग में न तो थी और न ही होगी । इस युग का यही सत्य है।
{इस युग में क्रान्ति के नाम पर प्रतिक्रया वाद को क्रान्ति माना जा रहा है जो हर और हिंसा को जन्म दे रहा है }
दूसरे दिन श्रीमती गुप्ता ने जब डब्बे खोले तो उनके आँसू निकल पड़े जी में आया कि सभी से जाकर झगड़ आऐं किंतु पति से कहने लगीं :-"अजी सुनो चलो ग्वारीघाट गरीबों के साथ दिवाली मना आऐं
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