04 August 2008

हम भी चाहते हैं कश्मीर आज़ाद हो जाये…

(भाग-1 : कश्मीर - नेहरु परिवार द्वारा भारत की छाती पर रखा बोझ… से जारी)

अपनी इन्हीं देशद्रोही नीतियों की वजह से कश्मीरी नेताओं और जनता ने देखिये क्या-क्या हासिल कर लिया है–
1) कश्मीर घाटी से गैर-मुस्लिमों का पूरी तरह से सफ़ाया कर दिया गया है।
2) कई आतंकवादी, जिन्हें सुरक्षाबलों ने जान की बाजी लगाकर पकड़ा था, पैसा, बिरयानी आदि लेकर जेल से बाहर आजाद घूम रहे हैं।
3) कश्मीर घाटी में अलगाववादी भावनायें जोरों पर हैं, चाहे वह “खुद का प्रधानमंत्री” हो या फ़िर छः साल की विधानसभा।
4) पश्चिमी मीडिया (खासकर बीबीसी) के सामने हमेशा कश्मीरी मुसलमान रोते-गाते नजर आते हैं कि “हम पर भारतीय सुरक्षा बल बहुत अत्याचार करते हैं…”
5) केन्द्र से मिली मदद, सबसिडी और छूट का फ़ायदा उठाने (यानी हमारा खून चूसने) में ये “पिस्सू” सबसे आगे रहते हैं।
6) “कश्मीरियत” का झूठा राग सतत् अलापते रहते हैं, जबकि अब कश्मीरियत मतलब सिर्फ़ इस्लाम हो चुका है।
7) कश्मीरी सारे भारत में कहीं भी रह सकते हैं, कहीं भी जमीने खरीद सकते हैं, लेकिन कश्मीर में वे किसी को बर्दाश्त नहीं करते।

कुल मिलाकर कश्मीरियों के लिये यह “विन-विन” की स्थिति है (दोनो हाथों में लड्डू), फ़िर क्या वे मूर्ख हैं जो इतनी आसानी से ये सुविधायें अपने हाथों से जाने देंगे? ढोंगी मुफ़्ती मुहम्मद चाहते हैं कि आतंकवादियों के परिवारों का पुनर्वास किया जाये (जाहिर है कि केन्द्र के पैसे से, यानी हमारे-आपके पैसे से) जिसके लिये एक करोड़ों की योजना उन्होंने केन्द्र को भेजी है। हमेशा की तरह इस योजना को मानवाधिकारवदियों और धर्मनिरपेक्षतावादियों ने हाथोंहाथ लपक लिया है। इनसे पूछना चाहिये कि आखिर किस बात का पुनर्वास और मुआवजा? तुम्हारा लड़का हमसे पूछकर तो आतंकवादी नहीं बना था। वह तो ज़न्नत में 72 परियों के लालच में “जेहादी” बना था ना? फ़िर हमारे खून-पसीने की कमाई पर तुम क्यों ऐश करोगे? जरा इसराइल से सबक लो, वहाँ स्पष्ट नीति है कि आतंकवादी के पूरे परिवार को दण्ड दिया जाता है, बुलडोजर से उसका घर-बार उखाड़ दिया जाता है और आतंकवादी के परिवार वाले फ़िलीस्तीन की सड़कों पर भीख माँगते हैं। शायद सड़क पर भीख माँगती अपनी माँ को देखकर किसी कट्टर आतंकवादी का दिल पिघले…। जले पर नमक छिड़कने की इंतहा तो यह कि महबूबा मुफ़्ती कहती हैं कि घाटी से गये पंडितों का स्वागत है, हम उनकी सुरक्षा का पूरा खयाल रखेंगे, लेकिन महबूबा ने यह नहीं बताया कि पंडितों की जिस सम्पत्ति और मकानों पर मुसलमानों ने कब्जा कर लिया था, वह उन्हें वापस मिलेगा या नहीं। है ना दोगलापन…

अब देखते हैं कि कैसे कश्मीरी मुसलमान हमारा खून चूस रहे हैं… कश्मीर के बारे में आर्थिक आँकड़े टटोलने की कोशिश कीजिये आपकी आँखें फ़टी की फ़टी रह जायेंगी। आप क्या सोचते हैं कि कश्मीर में गरीबी की दर क्या हो सकती है, बाकी भारत के मुकाबले कम या ज्यादा? 10 प्रतिशत या 20 प्रतिशत? तमाम छातीकूट दावों के बावजूद हकीकत यह है कि कश्मीर में गरीबी की दर है सिर्फ़ 3.4 प्रतिशत जबकि भारत की गरीबी दर है अधिकतम 26 प्रतिशत (बिहार और उड़ीसा जैसे राज्यों में), और ऐसा क्यों है, क्योंकि उन्हें पर्यटन (जो कि 90% भारतीय पर्यटक ही हैं), सूखे मेवों और पशमीना शॉलों के निर्यात से भारी कमाई होती है। ऊपर से तुर्रा यह कि कश्मीर को केन्द्र की तरफ़ से भारी मात्रा में पैसा मिलता है, मदद, सबसिडी और सहायता के नाम पर…

CAGR की रिपोर्ट के अनुसार 1991 में कश्मीर को 1,244 करोड़ रुपये का अनुदान दिया गया जो कि सन् 2002 तक आते-आते बढ़कर 4,578 करोड़ रुपये हो गया था (सन्दर्भ-इंडिया टुडे 14 अक्टूबर 2002)। 1991 से 2002 के बीच केन्द्र सरकार द्वारा कश्मीर को दी गई मदद कुल जीडीपी का 5 प्रतिशत से भी अधिक बैठता है। इसका मतलब है कि कश्मीर को देश के बाकी राज्यों के मुकाबले ज्यादा हिस्सा दिया जाता है, किसी भी अनुपात से ज्यादा। यह कुछ ऐसा ही है जैसे किसी परिवार के सबसे निकम्मे और उद्दण्ड लड़के को पिता का सबसे अधिक पैसा मिले “मदद(?) के नाम पर”। क्या आपको बचपन में सुनी हुई कोयल और कौवे की कहानी याद नहीं आई? जिसमें कोयल अपने अंडे कौवे के घोंसले में रख देती है, और कौवा उसके अंडे तो सेता ही है, कोयल के बच्चे भी जोर-जोर से भूख-भूख चिल्लाकर कौवे के बच्चों से अधिक भोजन प्राप्त कर लेते हैं, ठीक यही कश्मीर में हो रहा है, “वे” हमारे पैसों पर पाले जा रहे हैं, और वे इसे अपना “हक”(?) बताकर और ज्यादा हासिल करने की कोशिश में लगे रहते हैं। भारत के ईमानदार करदाताओं का पैसा इस तरह से नाली में बहाया जा रहा है। जब नरेन्द्र मोदी कहते हैं कि “गुजरात से कोई टैक्स न लो और न ही केन्द्र कोई मदद गुजरात को दे” तो कांग्रेस इसे तत्काल देशद्रोही बयान बताती है। अर्थात यदि देश का कोई पहला राज्य, जो हिम्मत करके कहता है कि “मैं अपने पैरों पर खड़ा हूँ…” तो उसे तारीफ़ की बजाय उलाहने और आलोचना दी जाती है, जबकि गत बीस वर्षों से भी अधिक समय से “जोंक” की तरह देश का खून चूसने वाला कश्मीर “बेचारा” और “धर्मनिरपेक्ष”?

एक बार रेलयात्रा में गृह मंत्रालय के एक अधिकारी मिले थे, उन्होंने आपसी चर्चा में बताया कि कश्मीर में आतंकवाद कभी भी खत्म नहीं होगा, क्योंकि “आतंकवाद के धंधे” से जुड़े लगभग सभी पक्ष नहीं चाहते कि इसका खात्मा हो!!! और खुलासा चाहने पर उन्होंने बताया कि आतंकवाद से लड़ने के नाम पर कश्मीर में पुलिस, BSF, CRPF और सेना को केन्द्र से प्रतिवर्ष 600 से 800 करोड़ रुपया “सस्पेंस अकाउंट” में दिया जाता है, जिसका कोई ऑडिट नहीं किया जाता, न ही इस बारे में अधिकारियों से कोई सवाल किया जाता है कि वह पैसा कहाँ और कैसे खर्चा हुआ। इसी प्रकार का “सस्पेंस अकाउंट” प्रत्येक राज्य की पुलिस को मुखबिरों को पैसा देने के लिये दिया जाता है (अब वह पैसा मुखबिरों तक कितना पहुँचता है, भगवान जाने)।

अब इसे दूसरी तरह से देखें तो, कश्मीर के प्रत्येक व्यक्ति पर केन्द्र सरकार 10,000 रुपये की सबसिडी देती है, जो कि अन्य राज्यों के मुकाबले लगभग 40% ज्यादा है, और यह विशाल धनराशि राज्य को सीधे खर्च करने को दी जाती है (कोई भी सामान्य व्यक्ति आसानी से गणित लगा सकता है कि कश्मीरी नेताओं, हुर्रियत अल्गाववादियों, आतंकवादियों और अफ़सरों की जेब में कितना मोटा हिस्सा आता होगा, “ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल” की ताजा रिपोर्ट में कश्मीर को सबसे भ्रष्ट राज्य का दर्जा इसीलिये मिला हुआ है)। इसके अलावा अरबों रुपये की विभिन्न योजनायें, जैसे रेल्वे की जम्मू-उधमपुर योजना 600 करोड़, उधमपुर-श्रीनगर-बारामुला योजना 5000 करोड़, विभिन्न पहाड़ी सड़कों पर 2000 करोड़, सलाई पावर प्रोजेक्ट 900 करोड़, दुलहस्ती हाइड्रो प्रोजेक्ट 6000 करोड़, डल झील सफ़ाई योजना 150 करोड़ आदि-आदि-आदि, यानी कि पैसा पानी की तरह बहाया जा रहा है, लेकिन एक अंधे कुँए में… तो इस बात पर किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिये कि वहाँ की आम जनता की आर्थिक हालत तमाम आतंकवादी कार्रवाईयों के बावजूद, देश के बाकी राज्यों के गरीबों के मुकाबले काफ़ी बेहतर है।

(भाग-3 में कश्मीर समस्या का एक हल “जरा हट के”…)
(भाग-3 में जारी रहेगा…)

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3 comments:

Super Indian said...

क्या तुम्हे लगता है की कश्मीर की आज़ादी से भारत में व्याप्त हिंदू - विरोधी भावनाएं समाप्त हो जायेगी ? या तुम्हे लगता है की कश्मीर समस्या के हल के बाद हिन्दुओं को कोई परेशानी नही होंगी ?

अगर तुम्हे ऐसा लगता है तो तुम ग़लत हो, भारत का असंगठन नही अपितु हिन्दुओं का संगठन ही हिन्दुओं का उद्धार करेगा. एक बार कश्मीर आजाद हो गया तो वहां भी पाकिस्तान जैसे हिंदू - विरोधी भावनाएं उठ खड़ी होंगी और फिर हम हिंदू अपने देश का एक और हिस्सा खो देंगे और इस्लामिक आतंकवादी एक कदम और आगे बढ़ कर हिमाचल पर अपना शिकंजा कस देंगे, तब क्या हिमाचल को भी "आजाद" कर के उनके हवाले कर दिया जाए ?

कश्मीर समस्या का हल कोई भी भारतीय प्रधानमंत्री कर सकता है, आव्यशकता है तो बस इच्छाशक्ति की.

MEDIA GURU said...

ham aazad kasmir chahte hain prantu vahan ke nivasiyo ko sath lekar chalne ka. jo bhi galtiya hamare pradhanmantriyon ne ki hai usse sabak lete hue aaj ke halat ko dhyan me rakhkar kadam udhane ki jaroorat hai.

Unknown said...

The only way to solve this any many other problems is to remove article 370. and get a uniform civil code somewhat similar to USA.
where laws are defined irrespective of your religion, caste or creed & that will be a real secular state.