27 March 2009

परसाई के शहर में व्यंग्य की परिभाषा खोजतीं खाली खोपडी


सुना है इन दिनों शहर व्यंग्य की सही और सटीक परिभाषा में उलझा हुआ है।
बवाल जी ने फोन पे पूछा - भैया ये सटायर की कोई नई परभाषा हो गई है क्या ?
अपन तो हिन्दी और साहित्य की ए बी सी डी नहीं जानते न ही ब्लागिंग की समझ है अपन में , न ही अपनी किसी ब्लागिंग के पुरोधा से ही गिलास-मंग्घे स्तर तक पहंच हैं जो कि उनकी बात का ज़बाव दे सकें सो अपन ने कहा भाई आप तो अपने बीच के लाल बुझक्कड़ हैं उनसे पूछा जाए ।
तभी हमने सड़क पर एक बैसाख नन्दन का दूसरे बैसाख नन्दन का वार्तालाप सुना {आपको समझ में नहीं आएगी उनकी आपसी चर्चा क्योंकि अपने भाई बन्दों की भाषा हम ही समझ सकतें हैं ।} आप सुनना चाहतें हैं..........?
सो बताए देता हूँ हूँ भाई लोग क्या बतिया रहे थे :
पहला :-भाई ,तुम्हारे मालिक ने ब्राड-बैन्ड ले लिया ..?
दूजा :- हाँ, कहता है कि इससे उसके बच्चे तरक्की करेंगें ?
पहला :-कैसे ,
दूजा :- जैसे हम लोग निरंतर तरक्की कर रहे हैं
पहला :-अच्छा,अपनी जैसी तरक्की
दूजा :- हाँ भाई वैसी ही ,उससे भी आगे
पहला :-यानी कि इस बार अपने को
दूजा :-अरे भाई आगे मत पूछना सब गड़बड़ हो जाएगा
पहला :-सो क्या तरक्की हुई तुम्हारे मालिक की
दूजा :- हाँ,हुई न अब वो मुझसे नहीं इंटरनेट के ज़रिए दूर तक के अपने भाई बन्दों से बात करता है। सुना हैकि वो परसाई जी से भी महान हो ने जा रहा है आजकल विश्व को व्यंग्य क्या है हास्य कहाँ है,ब्लॉग किसे कहतें हैं बता रहा है।
पहला :-कुछ समझ रहा हूँ किंतु इस में तरक्की की क्या बात हुई ?
दूजा :- तुम भी, रहे निरे इंसान के इंसान .........!!

6 comments:

admin said...

बहुत खूब।

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तस्‍लीम
साइंस ब्‍लॉगर्स असोसिएशन

संजय तिवारी said...

बहुत sundar शुभकामनाएं

Girish Kumar Billore said...
This comment has been removed by the author.
Pramendra Pratap Singh said...

झक्कास, वाह मान गये आपकी लेखनी को, बहुत अच्‍छी तरह प्रस्‍तुत किया है। इस ब्राडबैंड ने तो हर घर में परसाई पैदा कर दिये है।

Girish Kumar Billore said...

bhai pramendr
aap ko blogar's meet
yaad hai n ...?
mamalaa vahee hai
parsai ka "p" bhee
n samajhane valon ke haath satayar ka chakoo lag gaya hai

MEDIA GURU said...

kya teer mara hai sir.