कहता है मन उदास,
क्यूँ हो प्रिय तुम उदास?
आशाओं के दीप जला कर,
करो सभी सपने साकार।।
दुनिया का मर्म समझते हो,
पर तुम क्यो बहकते हो ?
तुम में ऐसी शक्ति है,
जो पर्वत को भी तोड़ सकती है।।
अपनो को पहचानों,
क्योकि वो अपने है।
इस दुनिया के रंग निराले,
बन जाते है बेगाने भी अपने।।
रिश्ते रक्त के ही नही होते,
रिश्ते हृदयों से बनते है।
अंजाने किसी मोड़ पर कोई,
अपनो से ज्यादा अपना हो जाता है।।
मत करो उदास अपने मन को,
बढ़ो सदा अपने सत्य पथ पर।
कठिन डगर होगी पर,
मिलेगा कोई तुझको तेरा हितकर।।
6 comments:
bahut sundar bhaav.
बहुत अच्छे विचार ... बहुत सुंदर प्रस्तुतीकरण।
रिश्ते रक्त के ही नही होते,
रिश्ते हृदयों से बनते है।
अंजाने किसी मोड़ पर कोई,
अपनो से ज्यादा अपना हो जाता है।।
क्या बात है, बहुत सुंदर कविता लिखि आप ने धन्यवाद
बेहतरीन रचना.
बहुत बढ़िया!
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