दाल की कीमतें जहाँ आसमान छू रही हैं, वहीं देश के विभिन्न बंदरगाहों पर लाखों टन चीनी और दालें बेकार पड़ी हैं। इनकी खुदरा बाजार में कीमत 1600 करोड़ रुपए है। कृषि और खाद्य मंत्री शरद पवार ने इस बारे में कोई जानकारी होने से इनकार किया है।
सरकारी सूत्रों ने बताया कि प्रमुख बंदरगाहों पर 6.19 लाख टन दाल और कच्ची चीनी के विशाल भंडार रुके पड़े हैं, क्योंकि इनका आयात करने वाली सरकारी कंपनियों ने या तो माल नहीं उठाया है या फिर निरीक्षकों की कमी के कारण उनकी गुणवत्ता का प्रमाण-पत्र नहीं जारी किया जा सका है।
इस घटना से जुड़े एक अधिकारी ने कहा कि यह साफ नहीं है कि ये दालें और चीनी खाने योग्य बची हैं या नहीं।
कृषि एवं खाद्यमंत्री पवार से जब इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा ‘‘मुझे नहीं पता’’। सरकार पर जब पक्ष और विपक्ष दोनों ओर से दाल के भंडार पर हमले हो रहे हैं, ऐसे समय में सड़ रहे जिंसों के भंडार से चिंतित मंत्रिमंडल सचिव तुरंत कार्रवाई के लिए संबंधित मंत्रालय पर जोर डाल रहे हैं।
एक सरकारी अधिकारी ने कहा कि म्याँमार जैसे देशों से आयातित कम से कम 1.36 लाख टन दाल और 4.83 लाख टन कच्ची चीनी पिछले दो महीने से कोलकाता, चेन्नई, मुंबई, कांडला और कोच्चि बंदरगाहों पर सड़ रही है।
अधिकारी ने कहा कि आयातित दालों में अरहर, मूँग, उड़द, मसूर और मटर की शामिल हैं।
By Bhavyansh Prakhar Rastogi
4 comments:
समझ में नहीं आता .. कैसी व्यवस्था है यहां ?
सब से पहले तो आप का लेख पढा नही जाता, क्योकि बेंक का हिसा तंग करता है, अपने शव्दो का रंग बदल दे ओर थोडा मोटा कर दे तो सही पढा जाये, बाकी लिखा आप ने सही है, यह सब समान चाहे समुंदर ना फ़ेंकना पडे, लेकिन इन नेताओ को कोई फ़र्क नही पडता, भुखे तो गरीब मरते है.... लानत है ऎसे सिअस्टम पर, लेकिन जब यही लोग वोट मांगने आते है तो लोग इन से यही सवाल क्यो नही पुछते ???
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इसके अलावा पिछले महीनों में छापों के द्वारा रबों रुपयों के हजारों टन दालें, चीनी, अनाज और अन्य खाद्य पदार्थ पकड़े गये उनका क्या हुआ? अगर उनको खुले बाजार में बेच दिया जाता तो भी इन चीजों के दामों में भारी कमी आ सकती थी।
ये समझ में नहीं आता कि माल पकड़े जाने की खबर तो आती है और बाद में उसका क्या हुआ कोई जिक्र ही नहीं होता।
कृषि मंत्री माननीय (?) शरद पवांर जी की मेहरबानी से हजारों टन आयातित लाल गेहूं ( जो पशुओं के खाने लायक भी नहीं था) को समुद्र में फेंकने के लिये टेण्डर मंगाये जाने की बात कोई भूला नहीं होगा।
मीडिया को भी ये सब नहीं दिखता।
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