02 March 2010

पति - पत्नी

पति - पत्नी

अहा ! मन में बिखरी खुशियाँ,

अहा ! दिल में खिलती कलियाँ .

आज यौवना का परिणय है,

अपने सपनों में तन्मय है .



लेकर भाव पूर्ण समर्पण,

करना है यह तन मन अर्पण .

पल्लव मन गुंजारित हर्षित,

लज्जा नारी सुलभ समर्पित .



मृदु-क्रीड़ा, आलिंगन, चुंबन,

रोम रोम में भरते कंपन .

अधीर हृदय की प्रणय पुकार,

उष्ण स्पर्श की मधु झंकार .



पुष्प सुवासित महका जीवन,

सात रंग से बहका जीवन .

किलकारी से खिला संसार,

खुशियों का न पारावार .



जग जीवन ने डाला भार,

कर्तव्यों का बोझ अपार .

मीत की मन में प्रीत अथाह,

देखे लेकिन कैसे राह .



अब शिथिल हुआ है बाहुपाश,

भटका मन है बृहत आकाश .



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मन में कोंपल फूट रही हैं,

सिंधु तरंगे उमड़ रही हैं .

माही को पाने की चाह,

बंधन पावन शुभ्र विवाह .



उन्माद अतुल रूप की राह,

काम तरंगित रुधिर प्रवाह .

भाव भंगिमा अंग उभार,

मोहित करतीं हृदय अपार .



सुरभि सांस में अधर विनोद,

रूप आलिंगन मदिर प्रमोद .

तन मन पर कर पति अधिकार,

आत्मिक सुख पौरुष संसार .



निसर्ग मिलन प्रकृति उपहार,

जीवन नन्हा हुआ साकार .

जग जीवन ने डाला भार,

कर्तव्यों का बोझ अपार .



भूल गया वह बाग बहार,

पाने को सारा संसार .

जग में हो उसका उत्थान,

सभी करें उसका सम्मान .



अब शिथिल हुआ है बाहुपाश,

भटका मन है बृहत आकाश .


कवि कुलवंत सिंह
--
Kavi Kulwant Singh
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