27 November 2007

इलाहाबाद विश्विविद्यालय ने नही कहा “डाक्टसर बच्च न”

अपनी आत्‍म कथा में इलाहाबाद वि‍श्‍वविद्यालय के बारे बाताते है कि जुलाई में विश्‍वविद्यालय खुल गया और मुझे दो महीने के तनख्‍वाह के रूप में इलाहाबाद वि‍श्‍वविद्यालय की तरफ से 1000 रूपये मिल गये। विश्‍वविद्यालय के उनके प्रति व्‍यवहार के विषय में वह कहते है कि एक बात हमेंशा खटकती है कि विश्वविद्यालय में मेरे प्रति विरोध का नही किन्‍तु असाहनुभूति और उपेक्षा का वातावरण था। जब से मेरी कैम्ब्रिज से वापसी हुई उस दिन से विभाग कदम-कदम पर मुढेमहसूर करा देना चाहता था कि तुम यहॉं वांक्षित नही हो। उन्‍होने मुझे डाक्‍टर बच्‍चन कहकर संबोधित करने में भी अपनी हीनता समझी। उन‍के लिये आज भी बच्‍चन जी था, बच्‍चन जी हिन्दी का कवि।
बच्‍चन जी आगे कहते है - विभाग का सारा तंत्र मुझे यह कटु अनुभूति करा देना चाहता था कि तुम आज भी ठीक उसी जगह हो जाहँ दो वर्ष पूर्व अपने को छोड़कर अपने को गये थे, जिममें मेरा वेतन भी सम्मिलित था। परन्‍तु मेरे सहयोगी ये दो बातें नही जानते थे कि प्रथम यह कि मेरा उद्देश्‍य किसी आर्थिक लाभ का रखकर अपने शोध कार्य को पूरा करने का नही था। दूसरी यह कि मेरा अर्जन का क्षेत्र केवल विश्‍वविद्यालय ही नही थी।

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