26 November 2007

हरिवंश राय बच्चजन – प्रारम्भिक जीवन

डाक्टर हरिवंश राय बच्‍चन मूलत: उत्‍तर प्रदेश के बस्ती के अमोढ़ा नामक ग्राम था। बाद में इनका पूरा परिवार प्रतापगढ़ जिले के बाबूपट्टी गाँव में आ गया। इनका पूरा परिवार बाद में इलाहाबाद चला आया, प्रतापगढ़ से इलाहाबाद आने वाले प्रथम मनसा व्‍यक्ति थें। इनके पिता का नाम श्री प्रतापनारायण था और इनके दो पुत्र श्री शालिग्राम और श्री हरिवंशराय बच्चन था। इनके पिता का विवाह इश्वरीप्रसाद की कन्‍या सुरसती देवी के साथ तय हुआ।
बच्‍चन जी अपने बच्‍चन के बारे में कहते है कि – मेरे माता-पिता ने मुझे जिस नाम से घर में पुकारा था, उसी को मैने अपने लेखक के लिए स्‍वीकार किया, उसी को मैंने अपने लेखक के लिये स्‍वीकार किया, हालांकि उन दिनों जैसे साहित्यिक और श्रुति-मधुर उपनाम लोग अपने लिए चुनते थे, उनके मेरे बच्‍चन जैसे छोटे लघुप्राण, अप्रभावकारी, घरेलू नाम का कोई मेल न था।
इनके पिता श्री अंग्रेजी पायनियर में क्‍लार्क पद पर कार्यरत थें, इन्‍होने पायनियर में सबसे छोटे पद से लेकर सबसे ऊँचे पद पर कार्यरत किये। जब वे रिटायर हुऐ तो उनकी तनख्‍वाह 200 रूपये से ज्‍यादा थी। इनके सहयोगियों ने इन्‍हे “पायनियर कार्यालय का आधार स्‍तंम्‍भ” (Pillar of the support of the Pioneer Office) कहा था।
बच्‍चन जी का जन्म 27 नवम्‍बर 1907 को हुआ, ओर इनके माता‍-पिता ने नाम हरिवंश रखा किनतु दुलार से इन्‍हे बच्‍चन कह कर पुकारते थे। इनकी प्रारम्भि शिक्षा घर पर ही हुई हिन्‍दी बड़ी बहनों से सीखा तो उर्दू की शिक्षा दीक्षा मॉं ने दी। बचपन के दिनों की बात बताते हुऐ, बच्‍चन जी कहते है कि एक बार इलाहाबाद में लोकमान्‍य तिलक और एनी बेसेंट का आगमन हुआ था और मैने इनके बारे में बहुत कुछ सुना था। टमटम के बैठा कर उनका जूलूस निकाला जाना था। और जब टमटम रूकी तो हिन्‍दू बोर्डिग हाऊस के छात्रों ने घोडें खोल दिये और स्‍वयं उनकी गाड़ी को खीचा। अगर मै अपने जीवन में कुछ न कर पाता तो मुझे अपने जीवन में एक बात पर गर्व करने के लिये पर्याप्‍त होता कि जिन लड़को ने उनकी गाड़ी खीची उनमें मै भी था। एक बार जब यह छोटे थे तो इन्हे पता चला कि विद्या मन्दिर में स्‍वामी सत्‍य देव परिव्राजक का व्याख्‍यान है। और यह भी उन्‍हे सुनने के लिये गये, भाषण में उनकी ओजस्विता से काफी प्रभावित हुए, उनकी आवाज़ दूर तक साफ साफ सुनाई देती थी। उनका भाषण हिन्‍दी हमारी राष्‍ट्रभाषा पर था। फिर उन्‍होन भी निर्णण किया कि मै हिन्‍दी माध्‍यम से शिक्षा ग्रहण करूँगा। उन दिनों स्‍कूलों में माध्‍यम बदलने के लिये डिप्‍टी इंस्‍पेक्‍टर से अनुमति लेना जरूरी होता था। उस समय डिप्‍टी इन्‍स्‍पेक्‍टर बाबू शिव कुमार सिंह थे। हिन्‍दी के प्रति इनका उत्‍साह देख का डिप्‍टी इंस्‍पेक्‍टर ने इन्‍हे हिन्‍दी की अनुमति दे दी। परीक्षा में प्रथम स्‍थान की अपेक्षा थी किन्‍तु हिन्‍दी माध्‍यम के कारण इन्‍हे द्वितीय स्‍थान से ही संतोष करना पड़ा। परन्‍तु इस सम्‍बन्‍ध में बच्‍चन जी का कहना कि मैने सही कदम चुना है।

2 comments:

बालकिशन said...

आपने अच्छी जानकारी दी. आपको धन्यवाद. कृपया इसे जारी रखें.

Sanjeet Tripathi said...

जारी रखें!!