30 January 2008

पीता रहा हूँ मै

तन्हायइयों के संग जीता रहा हूँ मैं,
तेरी बेवफाई के ग़म में पीता रहा हूँ मै।
तन्हाइयों......

मेरा हाथ छोड़ा जो तुमने,
मेरे दिल को तोड़ा जो तुमने,
तेरे ख्वाकबों में तब से खोया रहा हूँ मै,
ओढ़कर कफ़न हर पल सोया रहा हूँ मै।
तन्हाइयों......

तुमको न पा सका कैसी तकदीर है मेरी?
टूटे आइने सी तहरीर है मेरी,
भर के दिल में लावे हर शाम फूटता रहा हूँ मै,
चटखता देखकर शीशा, टूटता रहा हूँ मै।
तन्हाइयों......

हवाएं चलती रही है फुफकार कर,
मै खडा हूँ हर शख्सइ से हार कर,
हर गिरे मोती को धागें में पिरोता रहा हूँ मै,
तुझे याद कर रात दिन रोता रहा हूँ मै,
तन्हाइयों......

1 comment:

रीतेश रंजन said...

मित्र आपकी ये कविता दिल की पीडा को बहुत ही अच्छे तरीके से प्रदर्शित करती है ....
इसके लिए आपको बधाई!