01 February 2008

क्या मानवता ख़तम होती जा रही है?

पिछ्ले साल मुझे हरिद्वार जाने का अवसर मिला...
यह एक बहुत ही सुनहरा अवसर था मेरे लिए क्यूँ की मैं आपने जीवन में कभी इस शहर का दर्शन नहीं कर पाया...
यहाँ की जो बातें सबसे अच्छ्ही लगी मुझे वो मैं बताता हूँ...
स्वच्छ और निर्मल जल पवित्र गंगा की जैसे अमृत, वृक्षों से अक्षादित पर्वतमालायें, और यहाँ का तापमान, ये सब इस शहर को, जो हरी का द्वार माना जाता है आपने आप में एक महान शहर बनाते हैं...
मुझे इस शहर में हर की पौडी, चंडी देवी के मंदिर, मनसा देवी के मंदिर जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ...
मैंने इसमें सबसे ज्यादा सुख पाया, दो अलग अलग पर्वतों पर स्थित इन दोनों मंदिर तक जाने में, यद्यपि इसमें जटिल चढाई थी...
लेकिन वृक्षों के अक्छादित पहाडियों का दृश्य ही मनोरम होता है...
यहाँ एक ऐसा मंज़र मैंने देखा जिसने कुछ हद तक मेरा सारा उत्साह फीका कर दिया...
यह मंज़र था पर्यटकों द्वारा बंदरों को पत्थरों से मारे जाने का ....
शहरों के कांक्रेतीकरण के कारण ये सारे जीव अब वैसी जगहों तक सीमित रह गए हैं जहाँ अब वृक्ष बचे हैं, जैसा की ज्यादातर धार्मिक स्थलों के आस पास का माहौल रहता है...
और ये आपने जीवन के लिए लोगों द्वारा ले जाने वाले खाद्य पदार्थ (प्रसाद) पर निर्भर करते हैं..
तो ये तो आने जाने वाले पर्यटकों का प्रसाद लेने का प्रयास करेंगे ही...
मनुष्य को चाहिए की उनके लिए कुछ खाने का पदार्थ छोड़ कर आयें...
पर मनुष्य तो मानवता शायद भूलता जा रहा है..
अगर धार्मिक दृष्टि से भी देखें तो ये अधर्म है क्यूंकि हमारे धार्मिक ग्रंथ ये कहते हैं की सारे जीवों में भगवान का अंश है..इस दृष्टि से भी ये सही नहीं है..
और अगर मनुष्य की उत्त्पत्ति को देखें तो ये मनुष्य के वंशज कहे जाते हैं ..
इस घटना को देख कर यही प्रतीत होता है की मनुष्य मानवता भूलता जा रहा है...
क्या ये सही है ?
क्या मानवता ख़तम होती जा रही है?
क्या मनुष्य अधार्मिक होता जा रहा है ?

1 comment:

Anonymous said...

आपकी यह वृत्‍त सोचने को विवश करता है कि हमें जीवों के बारे में सोचना चाहिऐ, कम से कम अपने भोज्‍य का का एक हिस्‍सा किसी न किसी एक भूखे को देने का प्रयास करना चाहिए