21 January 2008

वो लोग...

सत्रहवें साल में आपने, मैंने सूनी एक कहानी
सुनकर छलक आई, मेरी आँखों से पानी...

उस कहानी में थी, वीरों की रवानी
जोश्वर्धक हर, नायक था हिन्दुस्तानी...

आपने पूर्वजों ने दी थी, कितनी ही कुर्बानी
हमें विरासत में मिली, आज़ाद हवा-पानी...

उनके कष्ट जान कर, अपने हुए बेमानी
होम करदी उन्होने, अपनी जिंदगानी...

ऐश से गुज़ार सकते थे, वो अपनी जवानी
देशभक्तिपूर्ण, उनके विचार थे लोहानी...

देश के लिए बहाया, रक्त जैसे पानी
चट्टान जैसा अडिग, देशप्रेम था जिस्मानी...

जुल्मों पर भी, अंग्रेजों की बात नहीं मानी
ओजपूर्ण लोग, सदा रहे स्वाभिमानी...

उत्पन्न करते थे, अंग्रेजों के लिए परेशानी
उन्होंने करा दी, सितमगर अंग्रेजों की रवानी...

देश को आजाद करा, वे हुए सैलानी
विचार स्वच्छ थे, जैसे कांच हो या पानी...

उनके राह पर हमनें, चलने की है ठानी
उनपर गर्व करता है, आज का हिन्दुस्तानी...

1 comment:

Pramendra Pratap Singh said...

मित्र आपकी कविता जोश और वीरता से ओतप्रोत है, बहुत ही अच्‍छा रचा है। बधाई।