04 May 2008

राज ठाकरे का ज़हर

पिछले दिनों आप सबों ने मराठी- उत्तर भारतीय विवाद के बारे में सुना और पढ़ा होगा। केन्द्र में था एक ऐसा राजनीतिज्ञ जो लोकप्रिय होना चाहता था, यानि कि राज ठाकरे।और इसके लिए उसने एक बहुत ही गन्दी चाल चली, लोगों को मराठी- गैर मराठी में बांटने की।

अब सुनिए मेरा यात्रा वृतांत-
मैं अभी २७ से ३० अप्रिल तक मुम्बई में ही था, एक साक्षात्कार के सिलसिले में।साक्षात्कार २८ को हो गया, अतः हमारे पास २ दिन थे मुम्बई के दर्शनीय स्थलों का भ्रमण करने को।

इसी दौरान २९ अप्रैल को मुझे कुछ समय दादर स्टेशन पर बिताने को मिला, वास्तव में मैं अपने दोस्तों के साथ वहाँ रेल का इंतज़ार कर रहा था।हमसब को भूख लग आई थी, अतः हमने सोचा कि कुछ खाते हैं वहाँ लगे स्टाल पर। वहाँ जाकर हमने तीन वडापाओ आर्डर किया और खाने का लुत्फ़ उठाने लगे।

वहीं एक और शख्स वडा पाओ खा रहा था।उसने कुछ और पाओ का आर्डर दिया। आर्डर मिलने पर वो अपना खाना पूरा करने लगा, उसी समय उसने अपनी थाली, जिसमे वो खाना खा रहा था, से एक पाओ स्टाल पर वापस करना चाहा। स्टाल के मालिक ने वापस करने से मना कर दिया क्यूंकि जूठी थाली से खाद्य सामग्री वापस नही होती।
अब ये शख्स चिल्लाने लगा और कहने लगा-
"राज ठाकरे तुम भइया लोगों के साथ ठीक करता है, जब वो तुम लोगों की गा********** (एक बहुत ही गन्दी गाली) करता है।तू क्यों नही लौटाएगा, अब तो मैं तेरे को एक रुपया भी नही देने वाला इस खाने का, और अगर तू ज्यादा बोलेगा तो यहीं थोरी देर में आकार तेरे को मार डालूँगा और तेरा सबकुछ छीन लूँगा।"

मेरा तो ये सुनकर खून खौलने लगा, और मैंने सोचा की मैं यहाँ कुछ बोलूं, पर मेरे दोस्त जो मेरे साथ थे उन्होंने मुझे इशारे से चुप रहने को कहा। बाद में मैंने बात समझी, की अगर मैं वहाँ कुछ बोलता भी, तो घाटा उस स्टाल के मालिक को होती जो शायद मारा जाता या लूट लिया जाता। स्टाल का मालिक, जो उत्तर प्रदेश या बिहार का लगता था, घबरा गया और कुछ देर बाद वो शख्स जो अपने को मराठी कहता था, बिना पैसे दिए वहाँ से गायब हो गया।

पता नही इस ज़हर को रोकने के लिए देश की सर्वोच्च अदालत कब आगे आयेगी और ऐसे ज़हर का इलाज करेगी, क्यूंकि इस ज़हर का इलाज राजनेता तो करने से रहे।कृपया कर माध्यम से आप सब इस ज़हर को फैलाने वालों, और इस ज़हर के ख़िलाफ़ अपनी राय लोगों तक पहुंचाएं, शायद कहीं किसी सही कान तक आवाज़ पहुँच जाए और ये सब ख़त्म हो जाए भारत से, अन्यथा भारत को टूटने में देर नही लगेगी।

2 comments:

Pramendra Pratap Singh said...

रंजन जी आपकी बात से सहमत हूँ आज पता नही देश के कुछ लोग अपनी राजनीतिक रोटी क सेकने के लिये क्‍या क्‍या नही करेगें ?

आज समय कि इन विषबीजों का अंत हो और यह सिर्फ और सिर्फ जनता के हाथ में है ।

रीतेश रंजन said...

bilkul sahi keh rahe hain aap...