10 October 2008

कन्या पूजन -सामाजिक समरसता का अनूठा प्रयोग

दुर्गाष्टमी के दिन कुंवारी कन्याओं के पूजन की परंपरा है जिसमें ब्राह्मण कन्याओं (यदि उपलब्ध हों तो)अथवा अपने आस पास परिचित परिवारों की कन्याओं को पूजन कर ,चरण प्रक्षालन कर भोजन करवाकर दक्षिणा देते हैंदुर्गाष्टमी के अवसर पर सीकर मैं संघ के कार्यकर्ताओं ने एक अनूठा प्रयोग किया .जिसमं सेवा बस्तियों(संघ के कार्यकर्ता तथाकथित दलित या हरिजन बस्ती की जगह सेवा बस्ती शब्द ही काम लेते हैं बस्ती जहां सेवा की आवश्यता है) की कन्याओं को प्रमुख कार्यकर्ताओं के घर कन्या पूजन के लिए आमंत्रित किया.जिसमें मेहतर समाज,गंवारिया ,नट आदि विभिन्न समाजों की करीब 130 कन्याओं का कन्या पूजन किया गया.कार्यक्रम का हेतु ये था कि संघ और सेवा भारती(जिस संस्था से मैं जुङा हूं) मैं काम करते करते कार्यकर्ता बंधुओं के मन मैं छुआछुत जैसी कलुषित सोच खुरच खुरच कर दूर हो जाती है पर कहीं हमारा परिवार हिंदवः सौदराः सर्वे न हिंदु पतितो भवेत् से दूर तो नहीं जा रहा क्या यह संस्कार हमारे घरों की माताओं बहनों तक पहुंचा या नहीं ...या के हिंदु समाज की समरसता की बातें मात्र खाना पूर्ति ही तो नहीं हो रही है ...तो ये सब बातें कार्यकर्ता के घर परिवार तक पहुंचे और धीरे धीरे इन सब चीजों को हम वृहद् रूप मैं कर पायेंगे तो सामाजिक समरसता की बात महात्मा गांधी डा हेडगेवार और श्री मा स गोलवलकर ने सोची थी हम उनको साकार कर पायेंगे.


कार्यक्रम की काफी कुछ जिम्मेदारी मेरी थी क्यों कि ऐसी कुछ बस्तियों मैं मेरा सहज आना जाना है जब बस्ति के प्रमुख युवा लोगों से बात हुइ तो उन्होंनेअपनी स्वीकृति दे दी....पर मेरी आंखों से आंसु निकल पङे जब उनमें से एक लङके ने कहा कि अब तक तुम कहां थे...क्या हम तुम लोगों से कम हिंदु हैं क्या..... खैर सब बच्चियों को नियत समय पर बस मैं लेकर निश्चित घरों मै छोङा और बहां सब कार्यक्रम संपन्न कर वापिस बस्ती मैं छोङा और तब तक हम सब की सांसे अटकी हुई थी कि कहीं कुछ गलत हो गया तो ...........क्यों कि सैंकङों वर्षों की छुआछूत जैसीकुरितियों को आप पलभऱ मैं साफ नहीं कर सकते.


खैर पूरा कार्यक्रम जैसा हम चाहते थे वैसा संपन्न हुआ...शाम को बस्ती मैं दुर्गा पूजा के कार्यक्रम मैं उन्होने फोन कर के मुझे बुलाया मैं जैसे हमेशा जाताहूं बैसे ही पहुंच गया ..पर वही हुआ जो मैं नहीं चाहता था....बस्ती मैं मेरे स्वागत की पूरी तैयारियां थी. माला...भाषण ...अतिथि के द्वारा दो शब्द...कुल मिलाकर सब बङे खुश थे मैं भी और वे भी......


मुझे यूं लगा जैसे बहुत दिनों बाद मैं घर लौटा हूं



2 comments:

Pramendra Pratap Singh said...

भारतीय परम्‍परा में स्‍त्री जाति की विशेष स्थिति है, उसमें कन्याओं को पूजनीय मना जाता है, आपने जो बाते रखी वह ज्ञानवर्धक रही।

तरूण जोशी " नारद" said...
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