07 January 2009

सम्पादक जी अपने खबरीयों को सिखाएं !!

मीडिया में महामारी जितने भी सवाल उठाए जा रहें हैं वे आधार हीन नहीं हैं प्रमोद रंजन की चिंता में गंभीर चितन की झलक दिखाई दे रही है। पिछले दिनों मेरे मित्र डाक्टर सतीश उपाध्याय जो जिला टीकाकरण अधिकारी हैं ने बताया कि पल्स पोलियो अभियान के विशेष चरण के लिए स्टोर से वैक्सीन का वितरण करते समय कुछ बॉक्स जो खाली थे स्टोर के बाहर साफ़ कराने के बाद रख दिए गए जिसे एक प्रतिष्ठित संचार माध्यम के प्रतिनिधि ने शूट करके ख़बर चला दी कि पोलियो वैक्सीन का टोटा होने के कारण अभियान में बाधा उत्पन्न ? जबकि भारत और राज्य सरकारों का सर्वोच्च प्राथमिकता वाले इस अभियान में कभी भी वैक्सीन की कमीं नहीं होती।इतना ही नहीं किसी भी शहर में आप जाएँ उससे लगे गाँवों के हाकर जोपत्रकार कहे जातें हैं जिस प्रकार का बर्ताव आम जनता से करतें हैं उसके बारे में भी मीडिया को सोचना ज़रूरी है। यदि सामाजिक सरोकारों की अनदेखी किए जाने वाली प्रवृत्तियों पर अंकुश नहीं लगाया तो तय है कि मीडिया के प्रति आम जनता जो इसे चौथा-स्तम्भ मानतीं उसके स्वरुप पर नकारात्मक असर होगा।समाचार सम्पादकों को विनम्र सलाह देने का माद्दा तो नहीं है फ़िर भी इन नन्हें मुन्नों को पत्रकारिता और दीवारें पोतनें/रंगने के अर्थों में अन्तर को समझानें का कष्ट करें ताकि ......बदलाव की उम्मीदें की जा सकें ?

1 comment:

Pramendra Pratap Singh said...

आज के खबरिया दौड़-भाग में मीडिया अपनी यर्थातता भूलता जा रहा है। एक दौर था जब मीडिया जनावाज होती थी किन्‍तु आज के दौर में सिर्फ कागज के टुकड़े मात्र रह गया है।