14 April 2009

चंद पक्तिंयाँ

ये बेरूखी किस काम की ?
जो निगाहों से निगाहे मिलने से डरते हो।
खुदा भी उसपे मरता है,
जो अट्टूट रिस्‍तो की इबादत करता है।।

3 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

अच्छी रचना!

श्यामल सुमन said...

हर इबादत की भी एक मंजिल होती है।
पूरी होने पर मानो खुदा इनायत करता है।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

बाल भवन जबलपुर said...

Wah pramendr ji
kawita bhee...
badhai ho