22 April 2009

तेरे इश्क में पागल हुये हम

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तेरे इश्क में पागल हुये हम,

तेरे यादो में घायल हुये हम।

तेरी इश्क मे वो क‍शिश है,

जो आसानी से मिले वो क्या इश्क है।

जमाने के डर से,

हम डर-डर के मिलते है,

हम वो युगल है

जो बे मौसम प्यार की बारिस करते है।

खौफ़ है इश्क के दुश्मनो से,

पर जिस इश्क में डर न हो,

वो इश्क हम नही करते है।।

वो दिन याद करो,

जब मै था और तुम,

रात का आगोस अपने चरम पर था।

मै और सिर्फ तुम,

देखते थे एक दूसरे को।

''काम-रात'' की कल्पना में खोये,

निगाहो में निगाहे मिलाये।

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7 comments:

विशाल कुमार मिश्रा said...

वाह भइया, ये भी

Udan Tashtari said...

बहुत बढ़िया.

संगीता पुरी said...

अच्‍छी रचना ..

Urmi said...

बहुत ही उन्दा लिखा है आपने!

MEDIA GURU said...

kisi se pyar ho gaya hai kya?
achhi rachna hai.

Rajat Narula said...

behtareen rachna hai...

Unknown said...

kavita ke dvara prem ko prastut karne ka tarika accha laga