27 November 2007

और यूनिवर्सिटी के दरवाजे सदा के लिये बंद हो गये(बच्चन की जन्मशती पर विशेष)

बात उन दिनों की जब एमए का परिणाम निकला था, उन्हे द्वितीय श्रेणी मिली थी। उस वर्ष किसी को भी प्रथम श्रेणी नही मिली थी। जब वे साहस कर विभागाध्‍यक्ष श्री अमरनाथ झा के पास पहुँचे तो उन्‍होने इनसे पूछा कि आगे क्‍या करने का विचार है। बच्चन जी ने कहा कि मेरा विचार तो यूनिवर्सिटी में रह कर अध्‍यापन कार्य करने का था किन्‍तु .... । झा साहब कि ओर से कोई उत्‍तर न पा कर फिर अपने वाक्‍य को सम्‍भाल कर कहा कि अब किसी इंटर या हाई स्‍कूल में नौकरी करनी पड़ेगी। इस पर झा साहब के ये वाक्‍य उन पर पहाड़ की तरह टूट पडें कि स्‍थाईत्‍व के लिये एलटी या बीटी कर लेना। जो कुछ भी झा साहब की ओर से अपेक्षा थी उनके इस उत्‍तर से समाप्‍त हो गया। उन्हे लगा कि अब मेरे लिये यूनिवर्सिटी के दरवाजे सदा के लिये बंद हो गये। इसी के साथ उन्‍होने उनसे विदा मांगी। मन उदास हो गया पर उदासी में ही शायद मन कुठ विनोद के साधन खोजनेकी ओर प्रवृत्‍त हो चुका था। और उन्‍हे अपने एक मित्र की लिमरिक याद आई, जो उनके मित्र ने झा साहब से यूनिवर्सिटी में जगह मॉंग मॉंग कर हार जाने के बाद लिखी थी और बच्‍चन जी भी उसी को गाते हुऐ विश्‍वविद्यालय से विदा लिये।
There was a man called A Jha;
He had a very heavy Bheja;
He was a great snob,
When you asked him for job,He dolesomely uttered, ‘Achchha dekha jayega.’

4 comments:

Anonymous said...

Evan is the greatest!!

-Kind regards
Taylor

Anonymous said...

Willard rocks!!!

Anonymous said...

The GREATEST post that I read all day?!

Parker

Anonymous said...

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