10 February 2008

माता सरस्‍वती चालीसा

।। स्‍ुतति।।

वंदे इंदु सुवार हार धवला,

या वस्‍त्रावृता।

या वीणा वर दंड मंडित करा

या श्‍वेत पद्मासना।।

 

http://thedesertofman.files.wordpress.com/2006/10/sara.JPG

 

।। दोहा ।।

जनक जननि पदपघ, निज मस्तक पर धारि ।

बन्दौं मातु सरस्वती, बुद्घि बल दे दातारि ।।

पूर्ण जगत में व्याप्त तव महिमा अमित अनंतु ।

दुष्टजनों के पाप को, मातु तुही अब हन्तु ।।

 

जय श्रीसकल बुद्घि बलरासी । जय सर्वज्ञ अमर अविनाशी ।।

जय जय जय वीणाकर धारी । करती सदा सुहंस सवारी ।।

रुप चतुर्भुज धारी माता । सकल विश्व अन्दर विख्याता ।।

जग में पाप बुद्घि जब होती । तबहि धर्म की फीकी ज्योति ।।

तबहि मातु का निज अवतारा । पाप हीन करती महितारा ।।

बाल्मीकि जी थे हत्यारा । तव प्रसाद जानै संसारा ।।

रामचरित जो रचे बनाई । आदि कवि पदवी को पाई ।।

कालिदास जो भये विख्याता । तेरी कृपा दृष्टि से माता ।।

तुलसी सूर आदि विद्घाना । और भये जो ज्ञानी नाना ।।

तिन्ह न और रहेउ अवलम्बा । केवल कृपा आपकी अमबा ।।

करहु कृपा सोई मातु भवानी । दुखित दीन निज दासहिं जानी ।।

पुत्र करइ अपराध बहूता । तेहि न धरइ चित एकउ माता ।।

राखु लाज जननी अब मेरी । विनय करउं भांति बहुतेरी ।।

मैं अनाथ तेरी अवलंबा । कृपा करउ जय जय जगदम्बा ।।

मधुकैटभ जो अति बलवाना । बाहुयुद्घ विष्णु से ठाना ।।

समर हजार पांच में घोरा । फिर भी मुख उनसे नहीं मोरा ।।

मातु सहाय कीन्ह तेहि काला । बुद्घि विपरीत भई खलहाला ।।

तेहि ते मृत्यु भई खल केरी । पुरवहु मातु मनोरथ मेरी ।।

चण्ड मुण्ड जो थे विख्याता । क्षण महु संहारे उन माता ।।

रक्तबीज से समरथ पापी । सुर मुन हृदय धरा सब कांपी ।।

काटेउ सिर जिम कदली खम्बा । बार बार बिनवउं जगदंबा ।।

जगप्रसिद्घ जो शुंभ निशुंभा । क्षण में बांधे ताहि तूं अम्बा ।।

भरत-मातु बुद्घि फेरेउ जाई । रामचन्द्र बनवास कराई ।।

एहि विधि रावन वध तू कीन्हा । सुन नर मुनि सबको सुख दीन्हा ।।

को समरथ तव यश गुन गाना । निगम अनादि अनंत बखाना ।।

विष्णु रुद्र जस सकैं न मारी । जिनकी हो तुम रक्षाकारी ।।

रक्त दन्तिका और शताक्षी । नाम अपार है दानवभक्षी ।।

दुर्गम काज धरा पर कीन्हा । दुर्गा नाम सकल जग लीन्हा ।।

दुर्ग आदि हरनी तू माता । कृपा करहु जब जब सुखदाता ।।

नृप कोपित को मारन चाहै । कानन में घेरे मृग नाहै ।।

सागर मध्य पोत के भंगे । अति तूफान नहिं कोऊ संगे ।।

भूत प्रेत बाधा या दुःख में । हो दरिद्र अथवा संकट में ।।

नाम जपे मंगल सब होई । संशय इसमें करइ न कोई ।।

पुत्रहीन जो आतुर भाई । सबै छांड़ि पूजें एहि भाई ।।

करै पाठ नित यह चालीसा । होय पुत्र सुन्दर गुण ईसा ।।

धूपादिक नैवेघ चढ़ावै । संकट रहित अवश्य हो जावै ।।

भक्ति मातु की करै हमेशा । निकट न आवै ताहि कलेशा ।।

बंदी पाठ करै सत बारा । बंदी पाश दूर हो सारा ।।

रामसागर बांधि हेतु भवानी । कीजै कृपा दास निज जानी ।।

 

।। दोहा ।।

मातु सूर्य कान्त तव, अन्धकार मम रुप ।

डूबन से रक्षा करहु परुं न मैं भव कूप ।।

बलबुद्घि विघा देहु मोहि, सुनहु सरस्वती मातु ।

रामसागर अधम को आश्रय तू दे दातु ।।

8 comments:

Neeraj Rohilla said...

आपने प्रारम्भ में जो स्तुति लिखी है उसमें कुछ गलतियाँ हैं: मेरी याददाश्त के हिसाब से ये कुछ इस प्रकार होना चाहिये ।

"या कुंदेन्दुतु शार हार धवला, या शुभ्रवस्त्रावता"

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