05 March 2008

रात की रानी की तरह महकती हूँ



रात की रानी की तरह महकती हूँ,
दिन के राज के लिये तरसती हूँ।
शाम होने पर वो चला जाता है,
सुबह होने पर मै चली जाती हूँ।

मिलने के लिये तरसते है दोनो,
वक्‍त के फेर में तड़पते है दोनो।
मिलन की की आस में दोनों,
दिन-रात में महकते है दोनों।

2 comments:

Batangad said...

बहुत खूबसूरत

रीतेश रंजन said...

बहुत ही अच्छी कविता है ये