15 March 2008

प.पू.पं. श्रीराम शर्मा आचार्य उवाच

"इन दिनों इतिहास का अभिनव अध्याय लिखा जा रहा है । इसमें हम में से हर किसी का ऎसा स्थान और योगदान होना चाहिए , जिसकी चर्चा पीढि़यों तक होती रहे । जिसकी स्मृति हर किसी को प्रेरणा दे सके , कि सोचना किस तरह चाहिए और चलना किस दिशा में , किस मार्ग पर चाहिए ? दीपक छोटा होते हुए भी अपने प्रभावक्षेत्र में प्रकाश प्रस्तुत करने और यथार्थता से अवगत कराने से घनघोर अंधेरे को भी परास्त करने में सफ़ल होता है ; भले ही इस प्रयास में उसे अपने तेल-बत्ती जैसे सीमित साधनों को भी दाँव पर लगाना पडे़ । क्या हमारा मूल्य दीपक से भी कम है ?"

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