26 April 2008

इक भद्दी सी टिपण्णी



vijayshankar said...
मतलब ये कि अब गैर उत्पादक चीजों से संस्कारधानी की शान बढ़ा करेगी। जबलपुर की शिनाख्त और लाज बचाने के लिए अब आभाष जोशी बचा है. आपने अपने तईं उन लोगों का ज़िक्र किया है जो जबलपुर की शान और प्रतिष्ठा थे. लेकिन कुछ दिनों से देख रहा हूँ कि आप भी समय के दबाव में बहे चले जा रहे हैं. नर्मदा की लहर की आपको चिंता ही नहीं. कम से कम चौंसठ जोगिनी मन्दिर का जिक्र ही कर देते कभी. स्त्रियों के जितने विविध रूप आज वहाँ जिंदा हैं उतने तो खजुराहो में भी नहीं हैं दोस्त. वह पूरे विश्व के लिए भारतीय नारी के अध्ययन का केन्द्र बन सकता है. न्रितत्वशास्त्रियों के लिए भी. मगर अफ़सोस. मुझे शर्म आने लगी है कि जबलपुर में मेरी ससुराल है.सुभद्रा कुमारी चौहान का नगर आज किस तरह दहशतगर्दी और कुसंस्कारधानी में तब्दील हो गया है, इसकी आप चर्चा तक नहीं करते. इसीको कहते हैं- आँख के अंधे नाम नयनसुख! आभाष जोशी आपको मुबारक हो
ज़वाब मेरे मित्र फोटोग्राफर संजीव चौधरी द्वारा खीचें फोटो देंगे







रही शेष टिप्पणियों की बात उनको
इस किले से





इस वक्त


यहाँ

या
धुआंधार में फेंक दूंगा

3 comments:

विजयशंकर चतुर्वेदी said...

मज़ा आ गया. धुआंधार में फेंके जाने को तैयार बैठा हूँ. बताइये कब पहुँचना है! हा हा हा!

Shiv said...

भाई साहब,

जीवन में अगर इसी तरह से सरप्राईजेज मिलते रहें तो जीवन को कोई हरा नहीं सकता...आया था 'एक भद्दी सी टिपण्णी' पढ़ने लेकिन यहाँ आकर जो पढ़ा और देखा, तो इतनी खुशी हुई जितनी जबलपुर में आदरणीय परसाई जी से मिलने पर होती...धन्यवाद.

Pramendra Pratap Singh said...

behtreen jankari diya hai aapne,

badhai