बदस्तूर एक छोटी सी,
चिन्गारी को हवा दिया।
जो आग लगी सारे शहर में,
पानी से बुझा दिया।।
वो चिल्लाते रहे हमारी गली,
पर हमारी आवाज को।
सबने गुस्से में दबा दिया।।
बदस्तूर ...............
घुट-घुट कर जीना हमें भी आता है,
गर्मियों में पसीना हमें भी आता है।
पर क्या करें जब जब दी सलाह हमने,
अपने ही लोगों ने हर मर्तबा ठुकरा दिया।।
बदस्तूर ...............
हम शराब को पानी समझे,
हकीकत को कहानी समझे।
जो कोई परिन्दा लाया पैगाम,
उसको मुन्डेर से हमने ही उड़ा दिया।।
दिन भर जगाया महताब,
रात में सुला दिया।
बदस्तूर ...............
चिल्लाने से तकदीर नही बदलती,
हाथ कटने से तहरीर नही बदलती।
हमें याद थे सारे किस्से अतीत के,
एक एक करके सबको भुला दिया।।
हमने हर हक़ीकत के जाम में,
ज़हर मिला दिया।।
बदस्तूर ...............
Dated – 1 अप्रेल 2005 by प्रलयनाथ जालिम