16 June 2008

क्षणिकाऍं - 4

(1)

कभी मयखाने आकर देखों दिल के गम खाली बोतलों में भरे जाते है।

रगों में ताजा पानी और लहू नलो में भरे जाते है।।

(2)

कोई पीकर बेहोश था, कोई बेहोशी में पी रहा था।

सारी महफिल में अकेला मैं मरकर जी रहा था।।

(3)

वे अपने हुस्न से अदाओं को परदा उठाये तो जरा।

प्‍यार की बारिश से दिल की आग बुझाये तो जरा।।

4 comments:

Udan Tashtari said...

वे अपने हुस्न से अदाओं को परदा उठाये तो जरा।
प्‍यार की बारिश से दिल की आग बुझाये तो जरा।।

--सही है.लिखते रहें.

Alpana Verma said...

achcha likha hai..

कुश said...

बहुत अच्छे..

Girish Billore Mukul said...

अति सुंदर बधाई
=>वे अपने हुस्न से अदाओं को परदा उठाये तो जरा।
प्‍यार की बारिश से दिल की आग बुझाये तो जरा।।