10 June 2008

प्रेमगीत

प्रेमगीत
बदल-बदल के लिबास पहनो,
जो दिल बदल दो तो वाह कर लूँ !!
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न तुम चुराओ नज़र कभी भी,
न कनखियों से निहारो मुझको !
मैं चाहता हूँ प्रिया सहज हो
जहाँ भी चाहो पुकारो मुझको !!
ये इश्क गरचे गुनाह है तो, है दिल की चाहत गुनाह कर लूँ...?
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कहो कि तुमको है इश्क़ हमसे
तो पहली बारिश में जा मैं भीगूँ,!
अगरचे तुम ने कहा नहीं कुछ
तो मैं ज़हर के पियाले पीलूँ !!
ज़हर को पीना गुनाह है तो,है दिल की चाहत गुनाह कर लूँ...?

3 comments:

Anonymous said...

bahut khub

Pramendra Pratap Singh said...

अच्‍छी कविता है, बधाई

अच्‍छे भावों के साथ काव्य रूप में पिरोया गया है बधाई

बाल भवन जबलपुर said...

Thank's Mahashakti