15 June 2008

छडिकाऍं -3

(1)

सारे शहर में उसकी हैसियत का,

कोई शख्स नही था।

जो मुद्दत से लड़ रहा था मुकद्दर से,

उनकी आँखो में अक़्श नही था।।

(2)

सारा दिन खामोश थे बेहोश थे,

आधी राम को होश आया।

जब लहू बन चला पानी,

जब हमको जोश आया।।

(3)

तेरी भी जिन्‍दगी में, कयामत का आलम आए।

तू भी तड़पे खूब, बेवफा भी मातम मनाए।।

2 comments:

Alpana Verma said...

sabhi kshanikayen achchee lagin..

Udan Tashtari said...

बढ़िया है, लिखते रहिये.