15 November 2008

"ईर्ष्योत्पादक

"ईर्ष्योत्पादक"

" तत्व ही आपके समग्र विकास का संकेत है ज्ञान दत्त जी की कलम से प्रसूता यह शब्द ब्लॉग्गिंग बनी बवाल-ए-जान,- पर बतौर टिप्पणी में शामिल है . लो भई....! कैंकढ़ा वृत्ति शब्द के समानार्थी शब्द की तलाश ख़त्म हुई ब्लॉग पर प्रसूता शब्द


माचिस की तीली के ऊपर बिटिया की से पलती आग
यौवन की दहलीज़ को पाके बनती संज्ञा जलती आग .
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एक शहर एक दावानल ने निगला नाते चूर हुए
मिलने वाले दिल बेबस थे अगुओं से मज़बूर हुए
झुलसा नगर खाक हुए दिल रोयाँ रोयाँ छलकी आग !
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युगदृष्टा से पूछ बावरे, पल-परिणाम युगों ने भोगा
महारथी भी बाद युद्ध के शोक हीन कहाँ तक होगा
हाँ अशोक भी शोकमग्न था,बुद्धं शरणम हलकी आग !
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सुनो सियासी हथकंडे सब, जान रहे पहचान रहे
इतना मत करना धरती पे , ज़िंदा न-ईमान रहे !
अपने दिल में बस इस भय की सुनो 'सियासी-पलती आग ?
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तुमने मेरे मन में बस के , जीवन को इक मोड़ दिया.
मेरा नाता चुभन तपन से , अनजाने ही जोड़ दिया
तुलना कुंठा वृत्ति धाय से, इर्षा पलती बनती आग !
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रेत भरी चलनी में उसने,चला सपन का महल बनाने
अंजुरी भर तालाब हाथ ले,कोशिश देखो कँवल उगा लें
दोष ज़हाँ पर डाल रही अंगुली आज उगलती आग !!
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4 comments:

प्रवीण त्रिवेदी said...

ha ha ha ha ha


blog vichaar factory lagaye hain kya bhai?????

बाल भवन जबलपुर said...

Massab aisaa laga kya......?

Pramendra Pratap Singh said...

काव्‍य प्रस्‍तुति बहुत अच्‍छी लगी

बाल भवन जबलपुर said...

singh saaheb
shukriya