17 January 2009

"फुर्षोत्तम-जीव "...

किस किस को सोचिए किस किस को रोइए
आराम बड़ी चीज है ,मुंह ढँक के सोइए ....!!
"जीवन के सम्पूर्ण सत्य को अर्थों में संजोए इन पंक्ति के निर्माता को मेरा विनत प्रणाम ...!!''
(यहाँ फुरसत+उत्तम =फ़ुरुषोत्तम शब्द के प्रादुर्भाव महिमा पर आधारित आलेख सादर प्रस्तुत है )
आपको नहीं लगता कि जो लोग फुर्सत में रहने के आदि हैं वे परम पिता परमेश्वर का सानिध्य सहज ही पाए हुए होते हैंईश्वर से साक्षात्कार के लिए चाहिए तपस्या जैसी क्रिया उसके लिए ज़रूरी है वक़्त आज किसके पास है वक़्त पूरा समय प्रात: जागने से सोने तक जीवन भर हमारा दिमाग,शरीर,और दिल जाने किस गुन्ताड़े में बिजी होता हैपरमपिता परमेश्वर से साक्षात्कार का समय किसके पास है...?
लेकिन कुछ लोगों के पास समय विपुल मात्रा में उपलब्ध होता है समाधिष्ठ होने का
इस के लिए आपको एक पौराणिक कथा सुनाता हूँ ध्यान से सुनिए
एकदा -नहीं वन्स अपान अ टाइम न ऐसे भी नहीं हाँ ऐसे
"कुछ दिनों की बात है नए युग के सूत जी वन में अपने सद शिष्यों को जीवन के सार से परिचित करा रहे थे नेट पर विक्की पेडिया से सर्चित पाठ्य सामग्री के सन्दर्भों सहित जानकारी दे रहे थे " सो हुआ यूँ कि शौनकादी मुनियों ने कहा-"हे ऋषिवर,इस कलयुग में का सारभूत तत्व क्या है.....?
ऋषिवर:-"फुर्सत"
मुनिगण:- "कैसे ?"
ऋषिवर :- फुरसत या फुर्सत जीवन का एक ऐसा तत्व है जिसकी तलाश में महाकवि गुलजार की व्यथा से आप परिचित ही हैं आपने उनके इस गीत का कईयों बार पाठ किया है .
मुनिगण:- हाँ,ऋषिवर सत्य है, तभी एक मुनि बोल पड़े "अर्थात पप्पू डांस इस वज़ह से नहीं कर सका क्योंकि उसे फुरसत नहीं मिली और लोगों ने उसे गा गाकर अपमानित किया जा रहा है ...?"
ऋषिवर:-"बड़े ही विपुल ज्ञान का भण्डार भरा है आपके मष्तिस्क में सत्य है फुर्सत के अभाव में पप्पू नृत्य न सीख सका और उसके नृत्य न सीखने के कारण यह गीत उपजा है संवेदन शील कवि की कलम से लेकिन ज्यों ही पप्पू को फुरसत मिलेगी डांस सीखेगा तथा हमेशा की तरह पप्पू पास हो जाएगा सब चीख चीख के कहेंगे कि-"पप्पू ....!! पास होगया ......"
मुनिगण:-ये अफसर प्रजाति के लोग फुरसत में मिलतें है .... अक्सर ...........?
ऋषिवर:-" हाँ, ये वे लोग हैं जिनको पूर्व जन्म के कर्मों के फलस्वरूप फुरसत का वर विधाता ने दिया है
मुनिगण:-"लेकिन इन लोगों की व्यस्तता के सम्बन्ध में भी काफी सुनने को मिलता है ?
ऋषिवर:-"इसे भ्रम कहा जा सकता है मुनिवर सच तो यह है कि इस प्रजाति के जीव व्यस्त होने का विज्ञापन कर फुरसत में होतें है, "
मुनिगण:-कैसे...? तनिक विस्तार से कहें ऋषिवर
ऋषिवर:-"भाई किससे मिलना है किससे नहीं कौन उपयोगी है कौन अनुपयोगी इस बात की सुविज्ञता के लिए इनको विधाता नें विशेष गुण दिया है वरदान स्वरुप इनकी घ्राण-शक्ति युधिष्ठिर के अनुचर से भी तीव्र होती है मुनिवर कक्ष के बाहर खडा द्वारपाल इनको जो कागज़ लाकर देता है उसे पड़कर नहीं सूंघ कर अनुमान लगातें हैं कि इस आगंतुक के लिए फुरसत के समय में से समय देना है या नहीं ? "
मुनिगण:-वाह गुरुदेव वाह आपने तो परम ज्ञान दे ही दिया ये बताएं कि क्या कोई फुरसत में रहने के रास्ते खोज लेता है सहजता से ...?
इस के लिए आपको एक पौराणिक कथा सुनाता हूँ ध्यान से सुनिए
एकदा -नहीं वन्स अपान अ टाइम न ऐसे भी नहीं हाँ ऐसे
"कुछ दिनों की बात है नए युग के सूत जी वन में अपने सद शिष्यों को जीवन के सार से परिचित करा रहे थे नेट पर विक्की पेडिया से सर्चित पाठ्य सामग्री के सन्दर्भों सहित जानकारी दे रहे थे " सो हुआ यूँ कि शौनकादी मुनियों ने कहा-"हे ऋषिवर,इस कलयुग में का सारभूत तत्व क्या है.....?
ऋषिवर:-"फुर्सत"
मुनिगण:- "कैसे ?"
ऋषिवर :- फुरसत या फुर्सत जीवन का एक ऐसा तत्व है जिसकी तलाश में महाकवि गुलजार की व्यथा से आप परिचित ही हैं आपने उनके इस गीत का कईयों बार पाठ किया है .
मुनिगण:- हाँ,ऋषिवर सत्य है, तभी एक मुनि बोल पड़े "अर्थात पप्पू डांस इस वज़ह से नहीं कर सका क्योंकि उसे फुरसत नहीं मिली और लोगों ने उसे गा गाकर अपमानित किया जा रहा है ...?"
ऋषिवर:-"बड़े ही विपुल ज्ञान का भण्डार भरा है आपके मष्तिस्क में सत्य है फुर्सत के अभाव में पप्पू नृत्य न सीख सका और उसके नृत्य न सीखने के कारण यह गीत उपजा है संवेदन शील कवि की कलम से लेकिन ज्यों ही पप्पू को फुरसत मिलेगी डांस सीखेगा तथा हमेशा की तरह पप्पू पास हो जाएगा सब चीख चीख के कहेंगे कि-"पप्पू ....!! पास होगया ......"
मुनिगण:-ये अफसर प्रजाति के लोग फुरसत में मिलतें है .... अक्सर ...........?
ऋषिवर:-" हाँ, ये वे लोग हैं जिनको पूर्व जन्म के कर्मों के फलस्वरूप फुरसत का वर विधाता ने दिया है
मुनिगण:-"लेकिन इन लोगों की व्यस्तता के सम्बन्ध में भी काफी सुनने को मिलता है ?
ऋषिवर:-"इसे भ्रम कहा जा सकता है मुनिवर सच तो यह है कि इस प्रजाति के जीव व्यस्त होने का विज्ञापन कर फुरसत में होतें है, "
मुनिगण:-कैसे...? तनिक विस्तार से कहें ऋषिवर
ऋषिवर:-"भाई किससे मिलना है किससे नहीं कौन उपयोगी है कौन अनुपयोगी इस बात की सुविज्ञता के लिए इनको विधाता नें विशेष गुण दिया है वरदान स्वरुप इनकी घ्राण-शक्ति युधिष्ठिर के अनुचर से भी तीव्र होती है मुनिवर कक्ष के बाहर खडा द्वारपाल इनको जो कागज़ लाकर देता है उसे पड़कर नहीं सूंघ कर अनुमान लगातें हैं कि इस आगंतुक के लिए फुरसत के समय में से समय देना है या नहीं ? "
मुनिगण:-वाह गुरुदेव वाह आपने तो परम ज्ञान दे ही दिया ये बताएं कि क्या कोई फुरसत में रहने के रास्ते खोज लेता है सहजता से ...?
ऋषिवर:-"हाँ,सरकारी दफ्तरों में यह (फुरसत) सहजता से सभी को मिलती है इसके लिए बहाना नामक क्रिया को सदा अपने साथ रखिए "
मुनिगण:-वाह , गुरुदेव सही ज्ञान दिया गुरुदेव ।
कुछ ही क्षणों उपरांत सारे मुनि कोई न कोई बहाना बना के सटक लिए फुरसत पा गए और बन गए ""फुर्षोत्तम-जीव "
गुरुदेव सूत जी के अनुसार :
फुर्सत और उत्तम शब्द के संयोजन से प्रसूता यह शब्द आत्म कल्याण के लिए बेहद आवश्यक और तात्विक-अर्थ लेकर धरातल पर जन्मां है आज यानी 18 दिसम्बर 2009 को इस शब्द का जन्मदिन जो नर नारी पूरी फुर्सत से मनाएंगें वे स्वर्ग में सीधे इन्द्र के बगल वाली कुर्सी पर विराजेंगे । इस पर शिवानन्द स्वामी एक आरती तैयार करने जा रहें हैं आप यदि कवि गुन से लबालब हैं तो आरती लिख लीजिए अंत में लिखना ज़रूरी होगा : कहत "शिवानन्द स्वामी जपत हरा हर स्वामी " पंक्ति का होना ज़रूरी है

2 comments:

Pramendra Pratap Singh said...

धन्‍य हो प्रभु आपकी माया अपरम्‍पार है, फुरूषोत्‍तम की जितनी अच्‍छा विश्‍लेषण कर डाला है, उसे पढ़ कर मन प्रफुल्लित हो गया।

MEDIA GURU said...

bahut sundar visleshan hai. furusottam kya hai aaj achhi tarah pata chala maza aa gaya .