29 December 2007

आज रूबरू हम उनके जज्‍बात से होंगे

आज रूबरू हम उनके जज्‍बात से होंगे,
मना लेंगे अगर खफ़ा किसी बात से होगें,

आज शाम उनका दीदार करेंगें,
मिलकर उनसे कुछ इज़हार करेंगें
जो कभी नही हुए बो परेशां आज रात से होगें,
आज रूबरू.....

जब आँखों में आँखें डालकर,
शर्म का पर्दा उतारकर,
मिलेंगें हम,
वो भर कर आहें इस मुलाकात से होगें।
आज रूबरू.....

जब उड़ेगा उनका दुपट्टा हवाओं सें,
हम घायल होंगें उनकी अदाओं सें,
हम दोंनों के दिल में कुछ एक हादसें होगें
आज आज रूबरू.....

कभी बालों को बिखेरकर,
होठों पे अगुंलियॉं फेरकर,
लेकर हाथों में हाथ उनका,
आज हम आजाद से होगें,
आज रूबरू.....

1 comment:

Pramendra Pratap Singh said...

कभी बालों को बिखेरकर,
होठों पे अगुंलियॉं फेरकर,
लेकर हाथों में हाथ उनका,
आज हम आजाद से होगें,
आज रूबरू.....


कविता में ये पक्तिं गजब की है ।