17 December 2007

बिखरा दिल

मर गये हैं जलकर कुछ अरमॉं, कुछ का मरना बाकी है।
सब डूबे हैं दरिया में, मेरा ही उतरना बा‍की है।।
डर लगता है जीने से,
खड़ी है मुश्किले करीने से,
हर देर से लौट चुके हम, तेरे घर से गुजरना बाकी है।
सब डूबे हैं दरिया में, मेरा ही उतरना बा‍की है।।
मेरा ये दिल तोड़कर,
चले गये तुम मुझे छोड़कर,

रो रोकर ऊब चुके हम, बस ऑंखे भरना बाकी है।

सब डूबे हैं दरिया में, मेरा ही उतरना बा‍की है।।

सुनकर मेरे गीत को,
याद करना अतीत को,
तुमने वादा तोड़ दिया, मेरा ही मुकरना बाकी है।
सब डूबे हैं दरिया में, मेरा ही उतरना बा‍की है।।
मेरे हाथ से जो तेरा हाथ छूटा,
दिल के संद मै भी टूटा,
मै बिखरा हूँ तन्‍हाई में बस दिल का बिखरना बाकी है।
सब डूबे हैं दरिया में, मेरा ही उतरना बा‍की है।।

5 comments:

Anonymous said...

अच्छा लिखा है, और अच्छा लिखना बाकी है,
ये तो बस शुरुआत है,कलम का और निखरना अभी बाकी है.

बहुत अच्छे, लिखते रहिये... शुभकामनाऍ

परमजीत सिहँ बाली said...

सुन्दर रचना है।बधाई।

Manish said...

NICE KEEP MIND IN DEEP............NICE

Pramendra Pratap Singh said...

तुम्‍हारी कविताओ में दर्द होता है। अच्‍छा लिखते हो

MEDIA GURU said...

thandhi me nadi ka pani bhi...............koshshis achchhi.