07 December 2007

देखो ये आवारे

देखो ये आवारे,
मोहब्‍बत के नाम पर ख़ून,
बहाने चले है।

ये मनचले आगोश में,
अपना जनाज़ा उठाने चले है।
अपने दुश्‍मनों को,
दिल की हर बात बताने चले है।

भूल कर अपना रास्‍ता,
गैरो को मंजिल दिखाने चले है।
जो राज है सबकी ऑंखों के सामने,
उसको ये छिपाने चले है।

बेहोश होकर,
दुश्‍मनों से दोस्‍ती निभाने चले है।
मौत को समझकर दिलबर,
उसको आज रिझाने चले है।

जिसकी गिरफ्त में है सभी,
उसी को आज फसाने चले है।
आज ये जवां अपनी तकदीर को,
खाक बनाने चले है।

6 comments:

anuradha srivastav said...

बहुत खूब........

anuradha srivastav said...

बहुत खूब........

anuradha srivastav said...

बहुत खूब........

समयचक्र said...

बहुत सुंदर प्रयास बढ़िया है

Pramendra Pratap Singh said...

ज़ालिम तुम तो कहर ढारहे हो।

Anonymous said...

युवाओं को देखने का एक नया नजरिया...बहुत अच्छे