18 February 2008

हरदोई गूजर के पंद्रह क्रांतिकारियों को मिली थी फांसी की सजा


हरदोई ग्राम के पंद्रह क्रांतिकारियों का न तो कोर्ट मार्शल हुआ न अदालत ने सजा सुनाई फिर भी उन्हे पेड़ से लटका कर सिर्फ इसलिए मौत के घाट उतार दिया गया क्योंकि उन्होंने लक्ष्मीबाई को कालपी जाते समय शरण दी थी। ब्रिटिश हुकूमत ने गढ़ी को तोपों से ध्वस्त कर दिया।

इतिहासविद् डीके सिंह के मुताबिक 7 मई 1858 को कोंच में जब तात्या टोपे, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई तथा अन्य क्रांतिकारियों की हार हो गयी तब जनरल ह्यूरोज और राबर्ट मिल्टन ने सलाहकार कैप्टन टर्नन को जालौन जिले का डिप्टी कलेक्टर कोंच में ही नियुक्त कर दिया। कोंच में पराजित हो जाने के बाद क्रांतिकारियों का मनोबल टूट गया तो वो विभिन्न रास्तों से अलग-अलग कालपी लौटे लेकिन जनरल ह्यूरोज क्रांतिकारियों का पीछा कर जल्द से जल्द कालपी पहुंचना चाहता था जिससे क्रांतिकारी संगठित होकर मुकाबला कर सकें। अत: उसने गुरसरायं के राजा केशव राव को सैनिकों के साथ कोंच में आमंत्रित किया और कोंच की रक्षा का भार उनको सौंपकर 9 मई 1958 को कालपी के लिए चल दिया। अंग्रेजी सेना जब कूच करती थी तब उसके गुप्तचर सेना के आगे-आगे चलकर सूचना एकत्रित करके जनरल रोज को दिया करते थे। कोंच की सेना का पहला पड़ाव हरदोई गूजर नामक गांव में पड़ा। हरदोई गूजर की दूरी जनपद के मुख्यालय उरई से तेरह किमी. है। रोज को उसके गुप्तचरों से सूचना मिली कि हरदोई गूजर के जमींदार नाना साहब पेशवा व जालौन की ताई बाई के भारी समर्थक है अत: रोज ने जमींदार को अपने कैंप में बुलाकर क्रांतिकारियों के मार्ग आदि के बारे में पूछा लेकिन जमींदार ने कोई भी महत्वपूर्ण सूचना नहीं दी। रोज के जासूसों ने उसे बताया कि खबर मिली है रानी लक्ष्मीबाई पचास घुड़सवार तथा सौ बंदूकचियों के साथ इसी रास्ते से कालपी की ओर गयी है। तब रोज ने अपने सैनिकों से हरदोई गूजर के हर घर की तलाशी लेने का आदेश दिया। इस तलाशी अभियान में बहुत से घायल क्रांतिकारी सैनिक लोगों के घरों में छिपे हुए थे। रोज को तलाशी के दौरान क्रांतिकारियों की दो तोपों भी मिल गयीं। इन सब बातों से रोज बेहद क्रोधित हुआ और उसने गांव के क्रांतिकारियों को फाँसी की सजा सुनाई।
प्रस्थान करने से पूर्व पंद्रह क्रांतिकारियों को रोज ने हाथ-पैर बांधकर गले में फाँसी का फंदा लटकाकर घोड़े की जीन पर बैठा दिया तथा दूसरा छोर ऊपर बेड़ से बांध दिया गया। बिगुल की आवाज के साथ ही फौज का जैसे ही मार्च शुरू हुआ। घोड़े जैसे ही आगे बढ़े क्रांतिकारियों का फंदा गले में कस गया और वह लेट गये। इतिहासकार लो ने अपनी पुस्तक सेंट्रल इंडिया डयूरियम दि टिवेलियन 1857-58 के पृष्ठ संख्या 278 पर लिखा कि जाने के पहले रोज न हरदोई की गढ़ी को ध्वस्त कर दिया था। रोज की सेना आगे जा रही थी और उधर पेड़ों पर पंद्रह शहीदों के शव लटके थे। कई दिनों बाद स्थानीय लोगों ने हिम्मत जुटाकर शव पेड़ों से उतारे और उनका अंतिम संस्कार किया। इसके बाद जालौन पर अंग्रेजों ने अधिकार कर लिया। हरदोई गूजर तथा आसपास के कई लोगों पर मुकदमे चलाकर सजा दी गयी तथा उनकी संपत्तियां जब्त कर लीं जिसमें कलंदर सिंह पुत्र सुरजन सिंह का नाम भी उल्लेखनीय है।

----- संकलन स्‍त्रोत अज्ञात

2 comments:

Anonymous said...

दिल और आंखे दोनों भींग गये हैं!

समयचक्र said...

padhakar ankhe nam ho gayi .bahut badhiya