20 February 2008

नाथूराम गोड़से का अस्थि कलश विसर्जन अभी बाकी है

गत 30 जनवरी को महात्मा गाँधी के अन्तिम ज्ञात (?) अस्थि कलश का विसर्जन किया गया। यह “अंतिम ज्ञात” शब्द कई लोगों को आश्चर्यजनक लगेगा, क्योंकि मानद राष्ट्रपिता के कितने अस्थि-कलश थे या हैं, यह अभी तक सरकार को नहीं पता। कहा जाता है कि एक और अस्थि-कलश बाकी है, जो कनाडा में पाया जाता है। बहरहाल, अस्थि-कलश का विसर्जन बड़े ही समारोहपूर्वक कर दिया गया, लेकिन इस सारे तामझाम के दौरान एक बात और याद आई कि पूना में नाथूराम गोड़से का अस्थि-कलश अभी भी रखा हुआ है, उनकी अन्तिम इच्छा पूरी होने के इन्तजार में।

फ़ाँसी दिये जाने से कुछ ही मिनट पहले नाथूराम गोड़से ने अपने भाई दत्तात्रय को हिदायत देते हुए कहा था, कि “मेरी अस्थियाँ पवित्र सिन्धु नदी में ही उस दिन प्रवाहित करना जब सिन्धु नदी एक स्वतन्त्र नदी के रूप में भारत के झंडे तले बहने लगे, भले ही इसमें कितने भी वर्ष लग जायें, कितनी ही पीढ़ियाँ जन्म लें, लेकिन तब तक मेरी अस्थियाँ विसर्जित न करना…”। नाथूराम गोड़से और नारायण आपटे के अन्तिम संस्कार के बाद उनकी राख उनके परिवार वालों को नहीं सौंपी गई थी। जेल अधिकारियों ने अस्थियों और राख से भरा मटका रेल्वे पुल के उपर से घग्गर नदी में फ़ेंक दिया था। दोपहर बाद में उन्हीं जेल कर्मचारियों में से किसी ने बाजार में जाकर यह बात एक दुकानदार को बताई, उस दुकानदार ने तत्काल यह खबर एक स्थानीय हिन्दू महासभा कार्यकर्ता इन्द्रसेन शर्मा तक पहुँचाई। इन्द्रसेन उस वक्त “द ट्रिब्यून” के कर्मचारी भी थे। शर्मा ने तत्काल दो महासभाईयों को साथ लिया और दुकानदार द्वारा बताई जगह पर पहुँचे। उन दिनों नदी में उस जगह सिर्फ़ छ्ह इंच गहरा ही पानी था, उन्होंने वह मटका वहाँ से सुरक्षित निकालकर स्थानीय कॉलेज के एक प्रोफ़ेसर ओमप्रकाश कोहल को सौंप दिया, जिन्होंने आगे उसे डॉ एलवी परांजपे को नाशिक ले जाकर सुपुर्द किया। उसके पश्चात वह अस्थि-कलश 1965 में नाथूराम गोड़से के छोटे भाई गोपाल गोड़से तक पहुँचा दिया गया, जब वे जेल से रिहा हुए। फ़िलहाल यह कलश पूना में उनके निवास पर उनकी अन्तिम इच्छा के मुताबिक सुरक्षित रखा हुआ है।

15 नवम्बर 1950 से आज तक प्रत्येक 15 नवम्बर को गोड़से का “शहीद दिवस” मनाया जाता है। सबसे पहले गोड़से और आपटे की तस्वीरों को अखंड भारत की तस्वीर के साथ रखकर फ़ूलमाला पहनाई जाती है। उसके पश्चात जितने वर्ष उनकी मृत्यु को हुए हैं उतने दीपक जलाये जाते हैं और आरती होती है। अन्त में उपस्थित सभी लोग यह सौगन्ध खाते हैं कि वे गोड़से के “अखंड हिन्दुस्तान” के सपने के लिये काम करते रहेंगे। गोपाल गोड़से अक्सर कहा करते थे कि यहूदियों को अपना राष्ट्र पाने के लिये 1600 वर्ष लगे, हर वर्ष वे कसम खाते थे कि “अगले वर्ष यरुशलम हमारा होगा…”

हालांकि यह एक छोटा सा कार्यक्रम होता है, और उपस्थितों की संख्या भी कम ही होती है, लेकिन गत कुछ वर्षों से गोड़से की विचारधारा के समर्थन में भारत में लोगों की संख्या बढ़ी है, जैसे-जैसे लोग नाथूराम और गाँधी के बारे में विस्तार से जानते हैं, उनमें गोड़से धीरे-धीरे एक “आइकॉन” बन रहे हैं। वीर सावरकर जो कि गोड़से और आपटे के राजनैतिक गुरु थे, के भतीजे विक्रम सावरकर कहते हैं, कि उस समय भी हम हिन्दू महासभा के आदर्शों को मानते थे, और “हमारा यह स्पष्ट मानना है कि गाँधी का वध किया जाना आवश्यक था…”, समाज का एक हिस्सा भी अब मानने लगा है कि नाथूराम का वह कृत्य एक हद तक सही था। हमारे साथ लोगों की सहानुभूति है, लेकिन अब भी लोग खुलकर सामने आने से डरते हैं…।

डर की वजह भी स्वाभाविक है, गाँधी की हत्या के बाद कांग्रेस के लोगों ने पूना में ब्राह्मणों पर भारी अत्याचार किये थे, कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने संगठित होकर लूट और दंगों को अंजाम दिया था, उस वक्त पूना पहली बार एक सप्ताह तक कर्फ़्यू के साये में रहा। बाद में कई लोगों को आरएसएस और हिन्दू महासभा का सदस्य होने के शक में जेलों में ठूंस दिया गया था (कांग्रेस की यह “महान” परम्परा इंदिरा हत्या के बाद दिल्ली में सिखों के साथ किये गये व्यवहार में भी दिखाई देती है)। गोपाल गोड़से की पत्नी श्रीमती सिन्धु गोड़से कहती हैं, “वे दिन बहुत बुरे और मुश्किल भरे थे, हमारा मकान लूट लिया गया, हमें अपमानित किया गया और कांग्रेसियों ने सभी ब्राह्मणों के साथ बहुत बुरा सलूक किया… शायद यही उनका गांधीवाद हो…”। सिन्धु जी से बाद में कई लोगों ने अपना नाम बदल लेने का आग्रह किया, लेकिन उन्होंने दृढ़ता से इन्कार कर दिया। “मैं गोड़से परिवार में ब्याही गई थी, अब मृत्यु पर्यन्त यही मेरा उपनाम होगा, मैं आज भी गर्व से कहती हूँ कि मैं नाथूराम की भाभी हूँ…”।

चम्पूताई आपटे की उम्र सिर्फ़ 14 वर्ष थी, जब उनका विवाह एक स्मार्ट और आकर्षक युवक “नाना” आपटे से हुआ था, 31 वर्ष की उम्र में वे विधवा हो गईं, और एक वर्ष पश्चात ही उनका एकमात्र पुत्र भी चल बसा। आज वे अपने पुश्तैनी मकान में रहती हैं, पति की याद के तौर पर उनके पास आपटे का एक फ़ोटो है और मंगलसूत्र जो वे सतत पहने रहती हैं, क्योंकि नाना आपटे ने जाते वक्त कहा था कि “कभी विधवा की तरह मत रहना…”, वह राजनीति के बारे में कुछ नहीं जानतीं, उन्हें सिर्फ़ इतना ही मालूम है गाँधी की हत्या में शरीक होने के कारण उनके पति को मुम्बई में हिरासत में लिया गया था। वे कहती हैं कि “किस बात का गुस्सा या निराशा? मैं अपना जीवन गर्व से जी रही हूँ, मेरे पति ने देश के लिये बलिदान दिया था।

12 जनवरी 1948 को जैसे ही अखबारों के टेलीप्रिंटरों पर यह समाचार आने लगा कि पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपये देने के लिये सरकार पर दबाव बनाने हेतु गाँधी अनशन पर बैठने वाले हैं, उसी वक्त गोड़से और आपटे ने यह तय कर लिया था कि अब गाँधी का वध करना ही है… इसके पहले नोआखाली में हिन्दुओं के नरसंहार के कारण वे पहले से ही क्षुब्ध और आक्रोशित थे। ये दोनों, दिगम्बर बड़गे (जिसे पिस्तौल चलाना आता था), मदनलाल पाहवा (जो पंजाब का एक शरणार्थी था) और विष्णु करकरे (जो अहमदनगर में एक होटल व्यवसायी था), के सम्पर्क में आये।

पहले इन्होंने गांधी वध के लिये 20 जनवरी का दिन तय किया था, गोड़से ने अपनी इंश्योरेंस पॉलिसी में बदलाव किये, एक बार बिरला हाऊस जाकर उन्होंने माहौल का जायजा लिया, पिस्तौल को एक जंगल में चलाकर देख लिया, लेकिन उनके दुर्भाग्य से उस दिन बम तो बराबर फ़ूटा, लेकिन पिस्तौल न चल सकी। मदनलाल पाहवा पकड़े गये (और यदि दिल्ली पुलिस और मुम्बई पुलिस में बराबर तालमेल और खुफ़िया सूचनाओं का लेनदेन होता तो उसी दिन इनके षडयन्त्र का भंडाफ़ोड़ हो गया होता)। बाकी लोग भागकर वापस मुम्बई आ गये, लेकिन जब तय कर ही लिया था कि यह काम होना ही है, तो तत्काल दूसरी ईटालियन मेड 9 एमएम बेरेटा पिस्तौल की व्यवस्था 27 जनवरी को ग्वालियर से की गई। दिल्ली वापस आने के बाद वे लोग रेल्वे के रिटायरिंग रूम में रुके। शाम को आपटे और करकरे ने चांदनी चौक में फ़िल्म देखी और अपना फ़ोटो खिंचवाया, बिरला मन्दिर के पीछे स्थित रिज पर उन्होंने एक बार फ़िर पिस्तौल को चलाकर देखा, वह बेहतरीन काम कर रही थी।

गाँधी वध के पश्चात उस समय समूची भीड़ में एक ही स्थिर दिमाग वाला व्यक्ति था, नाथूराम गोड़से। गिरफ़्तार होने के पश्चात गोड़से ने डॉक्टर से उसे एक सामान्य व्यवहार वाला और शांत दिमाग होने का सर्टिफ़िकेट माँगा, जो उसे मिला भी। बाद में जब अदालत में गोड़से की पूरी गवाही सुनी जा रही थी, पुरुषों के बाजू फ़ड़क रहे थे, और स्त्रियों की आँखों में आँसू थे।

बहरहाल, पाकिस्तान को नेस्तनाबूद करने और टुकड़े-टुकड़े करके भारत में मिलाने हेतु कई समूह चुपचाप काम कर रहे हैं, उनका मानना है कि इसके लिये साम-दाम-दण्ड-भेद हरेक नीति अपनानी चाहिये। जिस तरह सिर्फ़ साठ वर्षों में एक रणनीति के तहत कांग्रेस, जिसका पूरे देश में कभी एक समय राज्य था, आज सिमट कर कुछ ही राज्यों में रह गई है, उसी प्रकार पाकिस्तान भी एक न एक दिन टुकड़े-टुकड़े होकर बिखर जायेगा और उसे अन्ततः भारत में मिलना होगा, और तब गोड़से का अस्थि विसर्जन किया जायेगा।
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डिस्क्लेमर : यह लेख सिर्फ़ जानकारी के लिये है, फ़ोकटिया बुद्धिजीवी बहस में उलझने का मेरा कोई इरादा नहीं है और मेरे पास समय भी नहीं है। डिस्क्लेमर देना इसलिये जरूरी था कि बाल की खाल निकालने में माहिर कथित बुद्धिजीवी इस लेख का गलत मतलब निकाले बिना नहीं रहेंगे।

सुरेश चिपलूनकर
http://sureshchiplunkar.blogspot.com

10 comments:

Anonymous said...

नाथूराम गोडसे के द्वारा अदालत में दिये गये बयान पर सरकार ने प्रतिबन्ध लगा रहा है। कुछ महीने पहले तक ये बयान http://swordoftruth.com पर उपलब्ध था पर अब वहां भी नहीं है।

Pramendra Pratap Singh said...

नाथूराम गोडसे कतई गांधी विरोधी नही थी किन्‍तु सत्‍ता परिवर्तन के बाद गांधी वाद में जो परिवर्तन देखने को मिला। जिससे नाथ राम ही नही करीब राष्‍ट्रवादी युवा वर्ग आहत था। गोडसे ने जो किया वह राष्‍ट्र हित में ही था। आपको बधाई कि इतना अच्‍छा लेख प्रस्‍तुत किया। गांधी के बलिदान को नही भूला जा सकता है तो गोडसे के बलिदान को भी नही।

जय गांधी जय गोड़से

Anonymous said...

मेरा भी यही मानना है कि गोडसे ने जो भी किया वो समय की मांग थी. वरना गाँधी तो पूरे भारत को ही पाकिस्तान में मिला देते. पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपये देने की क्या आवश्यकता थी? जब उन्होंने अपना देश ही अलग बना लिया था तो पैसे भी अलग से बना लेते. उस वक्त पाकिस्तान की जो मदद भारत ने करी उसका परिणाम हम आज तक कश्मीर में भुगत रहे हैं और आने वाले कई वर्षो तक भुगतते रहेंगे.

MEDIA GURU said...

gandhiji ki hatya sahi samay per hui thi.parantu unhone pakistan ko itna mahatva nahi diya tha jitna ham aaj de rahe hai. aapne bahut achha likha badhai ho.

chandan said...

नाथूराम गोड़से जी एक महान नायक थे शायद गाँधी से भी ज्यादा अच्छे जिन्हों ने कभी भी अंग्रेजों की चापलूसी नही की और हमेशा से देश के बारे में हि सोचा। हमें हर साल श्री नाथूराम गोड़से जी का सहादत दिवस याद करने की जरुरत है और आज के युवा वर्ग को बताने की जरुरत है कि हम जिसे राष्ट्रपिता का काग्रेसी दर्जा दिये हुये है उसकी सच्चाई क्या है। अगर श्री नाथूराम गोड़से जी नही होते तो गांधी पाकिस्तान का और कितना तलवा चाटता और नोवाखालि और बटवारा में हिन्दु का खुन की तरह और कितनों का खुन पीता। धन्य है वो वीर जिसने अपना खुन दे कर भी हमारे देश की रक्षा किया हमें प्रतिक्षा नही संकलप करना होगा कि श्री नाथूराम गोड़से जी का अस्थी कलश अखण्ड हिन्दुस्तान कें पवित्र सिन्धु नदी में प्रवाहित हो और असख्य देशभक्त जिन्होंने अपने जान कि बाजी लगाई है उनकी आत्मा को शान्ती मिलें।

Dharmendra Yadav said...

godse ne ghandhiji ko markar bharat ko sangthit karne ka jo sapna dekha tha wo ajj bhi adhura hai. kayoki ajj bhi hamare desh me ese neta bhahut hai. jo ghandhiji ke sapno ko sakar karna chahte hai.(batwara)or batware per rajneeti khel rahe hai. unko ko bhi sabak sikhana chahiye.

Anonymous said...

JAI SHAHEED GODSE JAI BHARAT

IT WAS IN FOVOUR OF NATION TO EXECUTE GANDHI . IT WAS A RIGHT DECISON BUT IMPLEMENTED VERY LATE

VANSE MATRAM

Bharat Swabhiman Dal said...

अखण्ड भारत के अनन्य उपासक, सच्चे समाज सुधारक, यशस्वी पत्रकार और राष्ट्रीय क्रान्तिवीर महात्मा श्रीनाथूरामजी गोडसे को मेरा शत - शत नमन । वन्दे मातरम्

Anonymous said...

नाथूराम गोडसे के बयान निम्न लिंक पर उपलब्ध है
कृपया इन लिंक्स को अवश्य पढ़े
Statement of Nathuram Godse in court with other details

http://www.scribd.com/doc/29637040/Why-I-Did-It-by-Nathuram-Godse-Court-Statement#

Only statement of nathuram godse

https://mail.google.com/mail/h/1nuv0qcyiyy3p/?view=att&th=10eb4cc3583d347c&attid=0.1&disp=inline&realattid=f_eu1hiv2a&zw

मैँ देशद्रोही said...

भारत को हिँदु राष्ट्र बनाने मे क्या हर्ज है अगर ऐसा नहि किया गया तो हिँदुतत्व का अस्तित्तव समाप्त हो जायेगा अगर धर्म कि स्थापना चहाते है तो गोड़से वादी बनना ही होगा