25 February 2008

अच्छाई और बुराई

जो अच्छाईयाँ हैं तुममें -
सर्वत्र बिखेर दो !
महका दो -
गुलाब की तरह!
जो पाये -
अपना ले !
महक मिले जिसे -
बहक जाए !
बस अच्छाईयाँ बिखराए।
.
जो बुराईयाँ हैं तुममें -
उन्हें समेट लो !
दबा दो -
कफन में !
सुला दो -
चिर निद्रा में !
न उठने पाएं,
न दिखने पाएं,
न दूसरों को बहका पाएं!
.
कवि कुलवंत सिंह

2 comments:

MEDIA GURU said...

aapki yh panktiya shanti ka sandesh lekar aayi hai. badhai

Pramendra Pratap Singh said...

आपकी कविता में सामाजिक समरसता का भाव प्रवा हो रहा है, अच्‍छा लिखा है।