12 March 2008

जनतंत्र की शक्ति

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हर तरफ आवाज उठती,
दबा रही सरकारें है।
नही दबेगीं वे आवाजें,
ये शेर की दहाड़े है।

देश का वैभव अब चमकेगा,
आयेगी खुशहाली।
चट्टने चाहे जितनी आये,
नही रूकेगी धाराऐं।।

प्रतिशोध का समय है,
जनमत का उपयोग करों।
जो सरकार निक्‍कमी हो,
उसको मूल से नाश करों।।

रोटी कपड़ा और छत,
यह आधार भूत जरूरते है।
जिन शासको को यह न दिखें,
उनका जाना जरूरी है।।

भरो हुँकार, रख रूप खूँखार,
सारी शक्ति तुममे है।
क्‍योकि तुममें ही,
जनतंत्र की वास्‍तविक शक्ति है।।

3 comments:

Batangad said...

आक्रोश जरूरी है।

Girish Billore Mukul said...

SACHAAI HEE HAI
AAKROSH ME BHEE
ANUSHAASAN HOTAA
HAI...!!

रीतेश रंजन said...

युवाओं के जोश को सलाम...