
6 जून 1906 को कानून की पढ़ाई के लिये लंदन गये , वहाँ इण्डिया सोसाइटी बनाई। मेजिनी का जीवन चरित्र और सिखों का स्फूर्तिदायक इतिहास नामक ग्रंथ लिखा। 1908 में मराठी भाषा में 1857 का स्वातंत्र्य समर लिखा और यह जब्त कर ली गई। इन्ही की प्रेरणासे मदन लाल धींगरा ने कर्जन वायली की हत्या कर दी गई। सन् 1906 में ही राजेश दामोदर सावरकर को लेल भेजा गया और सावरकर बन्धुओं की सारी सम्पत्ति जब्त कर ली गई। कुछ दिनो बाद इग्लैंड से पेरिस गये और वहाँ से पुन: लंदन पहुँचने पर अपनी भाभी मृत्युपत्र नामक मराठी काव्य लिखा।
सावरकर जी को जलयान द्वारा भारत लाये जाते समय फ्रांस के निकट जहाज के आते ही शौचालय से छेकर समुद्र में कूद पड़े परन्तु पुन: पकडे पकड़े गये । बम्बई की विशेष अदालत ने आजन्म कारावास की सजा दी और काले पानी के लिये आंडमान भेज दिया गया। इसी जेल में उनके बड़़े भाई भी बंद थे। जेल में रह कर कमला गोमान्तक और रिहोच्छ्वास काव्य लिखा।
10 वर्ष बाद 1921 में अण्डमान जेल से लाकर रत्नागिरि जेल में उन्हे बंद कर दिया गया। यहाँ हिन्दुत्व, हिन्दूपदपादशाही, उ:श्राप, उत्तरक्रियासठयस्त्र, संयस्त खड्ग आदि ग्रंथ लिखे। हिन्दू महासभा की स्थापना कर शुद्धि का बिगुल फूका और हिन्दी भाषा का प्रचार किया। 10 मई 1934 को यहाँ से वे मुक्त हुये।
महात्मा गांधी की हत्या होने पर उन्हे पुन: बंदी बनाया गया। फरवरी 1949 को ससम्मान मुक्त हुये। 20 फरवरी 1966 को वह देशभक्त बीर संसार से विदा हो गया।