११ मई २००९ ०७:२३ को, GIRISH BILLORE <girishbillore@gmail.com> ने लिखा:
चिंतन घट रीत गए अपने सब मीत नए
हम हारे हरकारे, सबके सब जीत गए
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षटकोणी वार हुए, हर पल प्रहार हुए
शूल पाँव के रस्ते हियड़े के पार हुए
नयन हुए पथरीले अश्रु एक भी न गिरा
वो समझे वो जीते फिर से हम हार गए
लथपथ थे मृत नहीं ,वापस सब मीत गए
हम हारे हरकारे, सबके सब जीत गए ...!!
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Girish Billore Mukul
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गिरीश बिल्लोरे
3 comments:
बहुत अच्छा गीत, हार कर जीतने का अंदाज ही कुछ और होता है। जीत कर तो सभी जीतते है, पर हार कर बहुत कम लोग
बहुत ही प्यारा गीत है, दिल से निकला है और सीधे दिल में उतर जाता है।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
bahut khoob.........sir
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