मुहब्बत तर्क की मैंने, गिरेबा सी लिया मैंने,
ज़माने! अब तो खुश हो, ज़हर ये भी पी लिया मैंने
अभी जिन्दा हूँ लेकीन सोचता रहता हूँ खिलवत में ,
की अब तक किस तमन्ना के सहारे जी लिया मैंने
उन्हें अपना नही सकता, मगर आईटीन भी क्या कम है,
की मुद्दत हसीं ख्वाबों में खो कर जी लिया मैंने
अब तो दमनऐ दिल छोड़ दो बेकार उम्मीदों ,
बहुत दुःख सह लिया मैंने , बहुत दिन जी लिया मैंने.
बड़ी सिद्दत से पन्ने को पल ताते हुए मैंने १९६२ में नीलाभ प्रकाशन द्वारा प्रकाशित और उपेन्द्र नाथ "अशक" द्वारा संपादित पुस्तक संकेत - उर्दू से लिया है।
6 comments:
धन्यवाद भाई सुन्दर गजल के लिये
बहुत खूब भाई,
अश्क की नीलाभ प्रकाशन का हिन्दी साहित्य में बहुत बड़ा योगदान है।
बहुत खूब..
http://kisseykahen.blogspot.com/2008/06/blog-post_12.html
yahaan jo ke ye geet sunen ... aabhaar.
५ दिन की लास वेगस और ग्रेन्ड केनियन की यात्रा के बाद आज ब्लॉगजगत में लौटा हूँ. मन प्रफुल्लित है और आपको पढ़ना सुखद. कल से नियमिल लेखन पठन का प्रयास करुँगा. सादर अभिवादन.
meet ji geet sunanane ki liye bahut bahut badhai.
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