11 September 2008

कोसी तेरे प्रेम में




कोसी तेरा प्रेम


तेरा निश्छल प्रेम


बन गया


निर्दयी


निर्लज्ज


की तूने फ़िर से हमें


अपने प्रेम के आगोश में


ले लिया ।


भूंखे, बेघर हो जायेंगे


तेरे


प्रेम में


इतना ज्ञान नही था।


की पूरे कुनबे को


कर दिया


तबाह ,


बर्वाद


दूर हो गए अपनों से


फ़िर वाही मौत का


मंजर


जमीं बनी बंजर


घर हो गए खंडहर


शायद , फ़िर भूंखे रहेंगे


बेघर हो जायेंगे ।


कोसी तेरे प्रेम में।




1 comment:

रीतेश रंजन said...

हे कोसी! उन नेताओं की गलतियों की सज़ा कृपा करके आम मनुष्यों को मत दो, क्यूंकि ये नेतागण तो मनुष्य के लिबास में पिशाच हैं, ये कभी सुधरने वाले नहीं!