कविमन बोले,
आखें खोले,
दुनिया परायी,
देखो वो आई,
डाई वो लायी,
थोडा मुस्कुरायी,
कवि सर गंजा,
हांथों से मंजा,
कवि मन घायल,
बजी उसकी पायल,
कविमन रोये,
क्लेश बोए,
कविमन उदास,
जाने कहाँ आस,
तभी पाई कविता,
जैसे कोई सरिता,
कविमन हर्षित,
अब नहीं व्यथित,
कविमन नाचे,
झूमे गाये,
खुशियाँ मनाये,
ग़म भूल जाये।
कविमन पाया,
जीवन हँसना,
दुःख पी लेना,
इनमे ना फँसना।
5 comments:
बहुत सही!!!
=------------------\\\
निवेदन
आप
लिखते हैं, अपने ब्लॉग पर छापते हैं. आप चाहते हैं लोग आपको पढ़ें और आपको बतायें कि उनकी प्रतिक्रिया क्या है.
ऐसा ही सब चाहते हैं.
कृप्या
दूसरों को पढ़ने और टिप्पणी कर अपनी प्रतिक्रिया देने में संकोच न करें.
हिन्दी
चिट्ठाकारी को सुदृण बनाने एवं उसके प्रसार-प्रचार के लिए यह कदम अति महत्वपूर्ण है, इसमें अपना भरसक योगदान करें.
-
समीर लाल
-
उड़न तश्तरी
बिलकुल सही
धन्यवाद
bahut badhiya hai kavi ka man .
मित्र आपकी कविता पढ़ कर बहुत मजा आया, हँसते-हँसते मजा आ गया।
बहुत अच्छे भाव दिये है।
बधाई
धन्यवाद मित्र! वैसे भी मेरी यह कोशिश रही है की मेरी रचनाओं उस पढ़ कर लोग अपनी चिंताओं को एक क्षण के लिए भूल जायें!
Post a Comment