07 December 2008

तुम अनचेते चेतोगे कब समझ स्वयं की देखोगे कब

तुम अनचेते चेतोगे कब
समझ स्वयं की देखोगे कब
जागो उठो सवेरा समझो
देखो एक सलोनी छाजन बुनालो
बेल अंकुरित सेम की देखो
खोज रही हैं सहज सहारा .!
आज सोच लो सोचोगे कब
सुनो आज बस सुर इक गाना
वंदे मातरम गीत सुहाना
भारत में भारत ही होगा
मत विचार क़र्ज़ के लाओ

3 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

सुन्दर रचना है\बधाई।

Girish Kumar Billore said...

shukriyaa ji

Pramendra Pratap Singh said...

प्रेरणादायी कविता, कविता में बहुत कुछ बिना कहे कह दिया गया है। आज भारतीयों की एकता बहुत जरूरी हे।