09 December 2008

कांग्रेस ने नहीं हराया भाजपा को राजस्थान मैं............

बङे बङे विश्लेषण पढे राजस्थान मैं भाजपा के हारने के बाद...आतंकवाद के मुद्दे की अप्रासंगिकता को इसका कारण बताया जा रहा हैं...अच्छा है कांग्रेस भी इस मुगालते मैं रहे कि हमने भाजपा के कुशासन से जनता को मुक्ति दिलाई जनता ने इसे नकार दिया....पर कारण कुछ और हैं...दो ऐसे बङे मुद्दे थे जिनको यदि भाजपा के नेताओं ने पकङा होता तो आज भाजपा की 78 की जगह 120 सीटें होती...
पहला तो यदि भाजपा ने गुर्जरों के रूप मैं अपना वोट बैंक हमेशा हमेशा के लिए खो दिया...आरक्षण मिलता न मिलता पर यदि कहीं गुर्जर इस मुद्दे पर कहीं पार्टी नेताओं की सहानुभूति भी महसूस करते तो शायद स्थिति इतनी बुरी नहीं होती...पर आंदोलन के दौरान राज्य के नेताओं द्वारा टीवी स्क्रीन पर गुर्जर जाति को सरासर डकैत घोषित करना उन्हे नागवार गुजरा और जिस तरह आंदोलन का दमन किया गया और हत्यायें की गई तो पूरे समाज ने निर्विवाद रूप से भाजपा को उसका प्रतिफल देने मैं कसर नहीं छोङी....मीडिया के लोग भी एसी कमरों मैं बैठकर रिपोर्टें बनाते हैं इसलिए विश्लेषण मैं इस कारण को ज्यादा तवज्जो नहीं दी गई है...गुर्जर प्रत्याशी इतने जीतकर नहीं आये क्यों कि अधिकतर गुर्जर बहुल सीटें आरक्षित हैं और वे अपनी मर्जी के उम्मीदवार को वोट नहीं देने के लिए अभिशप्त हैं....खैर कुल मिलाकर इन्होंने अपना बदला लिया और ये अब आगे आने वाले चुनावों मैं इसी तरह परिलक्षित होगा ......शायद तब तक इन एयर कंडीशंड पोलिटिक्स करने वाले नेताओं को अक्कल आये....
दूसरा जिस तरह से वसुंधरा राजे ने गुर्जर आंदोलन को सलटाया था उससे भी ठीक तरह से अबकि बार टिकिटों के बटवारे मैं भाजपा संगठन को सलटाया .....टिकिटों के बटवारे से ठीक पहले जिस तरह सरकार ने कर्मचारियों को खुश किया हुआ था...और जिस तरह के विकास कार्य करवाये थे तो यूं लगता ही नहीं था कि कि सरकार नहीं आने वाली...कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि आज के दिन मैं राजस्थान के छोटे से छोटे गांव की सङके दिल्ली की सङकों को भी मात करती है....पर टिकिट के बटवारे का आधार मात्र वसुंधरा राजे मैं निष्ठा को देखा गया...संभवतया इनका अतिआत्मविश्वास इन्हें इस हद तक ले गया कि किसी भी गधे घोङे को खङा करेंगे वो जीत जायेगा...पार्टी ...राष्ट्रवादी विचार मैं आस्था सब गौण हो गई....चुनाव से पहले की मेरी पोस्ट मैं इसके बारे मैं मैने लिखा था
नीचे 14 नवंबर को छपी मेरी पोस्ट पर मैने कुछ सीटों के कयास लगाये थे जिनका परिणाम साथ मैं दिया गया है
1. नीम का थाना सीट पर श्री प्रेम सिंह बाजोर कि जीत निश्चित करने के लिए बहां के लोकप्रिय युवा नेता धर्मपाल गुर्जर को पास मैं खेतङी से टिकिट दिलाया गया(प्रेंम सिंह पार्टी मैं अच्छा चंदा देते हैं और सांसद के मित्र हैं). परिणाम-गुर्जर बहुल नीम का थाना के गुर्जर नाराज और खेतङी के पूर्व विधायक निर्दलीय मैंदान मैं जिससे दोनों ही सोटों पर संघर्ष की स्थिति जो टाली जा सकती थी और बहुत पक्की जीत खटाई मैं
परिणाम---प्रेम सिंह बाजौर(सीकर के सांसद के मित्र) नीम का थाना से 22000 वोटों से हारे धरमपाल 11 हजार वोटों से यदि धर्म पाल को नीम का थाना से टिकिट मिलती तो ये परिणाम निश्चित रूप से उल्टा होता...
2. दांता रामगढ मैं मजबूत आशा पुजारी को जब टिकिट नहीं देकर श्रीमति कंबर को टिकिट मिला तो प्रतिद्वंदी ने लड्डू बांटे क्यों कि इससे जीत निश्चित हो गई….
परिणाम--- दांता रामगढ से आशा कंबर(पूर्व मुख्यमंत्री भैंरो सिंह शेखावत के छोटे भाई की पत्नि) तीसरे स्थान पर रही
3. फतेहपुर सीट पर सांसद के छोटे भाई श्री नंद किशोर महरिया जिनकी पिछली बार जमानत जब्त हुई थी उम्मीदवार हैं जो निस्चित रूप से इतिहास दोहरायेंगे…..
परिणाम---फतेह पुर से नंद किशोर महरिया8000 वोटों से हारे
4. लक्ष्मण गढ सीट पर भाजपा के जिले के कद्दावर औऱ समर्पित नेता व वर्तमान भाजपा महांमंत्री श्री हरिराम रणवा की जगह की जगह एकदम अनजान व्यक्ति मदन सेवदा को टिकिट दी गई(सांसद सुभाष महरिया के निजी परिचित कार्यकर्ताओं के लिए अंजान)..श्री हरिराम को टिकिट न मिले इसके लिए सांसद महोदय ने पूरी ताकत झौंक दी औऱर इस जीती हुई सीट की हार पर मौहर लगा दी हैं.
परिणाम---मदन सेवदा चौथे स्थान पर रहै....जमानत जब्त
कुल मिलाकर आतंकवाद के मुद्दे पर राष्ट्रवाद का जैसा जूनून भाजपा कार्यकर्ताओं मैं चढना चाहियें था वो नहीं चढ पाया और कार्यकर्ताओं ने चमचों के लिए काम करने के लिऐ अपनी असहमति दे दी....कुल मिलाकर धुर भाजपाइयों मै सरकार का न बनना कोई दुःख का विषय नहीं है...क्यों कि वो जानते हैं कि उन्हें कांग्रेस ने नहीं हराया है....

2 comments:

Pramendra Pratap Singh said...

डाक्‍टर साहब आपका राजनैतिक विश्‍लेषण वास्‍तव में सटीक है। आज जिस प्रकार भाजपा नेतृत्‍व और कार्यकर्ता के मध्‍य दूरी बढ़ती जा रही है, वैसे वैसे 2009 के लोकसभा चुनाव से आशा भी धूमिल होती जा रही है। हम दिल्‍ली और राजस्‍थान जीत सकते थे, किन्‍तु नही जीत पाये इसके पीछे शीर्ष नेतृत्‍व है। राजनाथ सिंह एक बहुत अच्‍छे नेता है किन्‍तु वरिष्‍ठ नेताओं के आगे उनकीनही चलती है अगर मुरली मनोहर जोशी को अध्‍यक्ष बनाया जाता तो वे बेहतर कर सकते थे।

MEDIA GURU said...

mahashakti ji mai aap se bilkul sahmat hoon.lekin kuchh had tak gurjar aandaolan ki bhomika rahi hai.