09 December 2008

एक ताऊ यहाँ भी जीता

भैया
कहो दादा
जीत गए
हओ जीत गए
अपने गुड्डू के लानें
"सब हो जाएगा दादू अब निसफिकर रैना "
"काय, गुड्डू का बड़ा भाई भी मेई आऊं और मां भी बाप भी तुम चिंता नै करना "
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भैया , जा पंच बरसी सुई जीत लई....?
हओ,दादा
अपने गुड्डू को
अरे दादा, तुम काय चिंता कर रए हो, जा बार मैं मंत्री बन गओ तो गुड्डू
समझो.....?
"बूडा गोपाल हतप्रभ किंतु आशा भरी निगाहों से बांके लाल को देख रहा था
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गुड्डू चुनावी झंडे बैनर ढोता, खम्बों पे लगाता , बांके भैया का परम सेवक पूरा दिन रात एक करता तीसरी बार भी यही सब कुछ करने जा रहा था कि सियासी जंग में घायल हो गया टांगें काटनी पड़ी . एक अपाहिज जिंदगी जो हर पल बांके की ओर आशा भरी नज़र से अपलक शून्य में तांक रहा था . बूडे बाप आंखों में अब उसे अपाहिज देखने की भी शक्ति न थी . फ़िर भी घसिटता हुआ बूदी बाखर की ओर चल पड़ा उसे पता जो चला था कि बांके भैया आए हैं .
लंबे इंतज़ार के बाद भईया जी के दर्शन पाकर आशा भरी निगाहों से उसे निहारता कि भैया जी ने कहा "दाऊ गुड्डू की मुझे चिंता अपन अपराधियों को सजा दिलवाएंगे जेल भेज देंगे अब तो हम मंत्री हो गए न "
सफ़ेद कार में सट से दाखिल भईया जी रवाना हुए . धूल का गुबार उडाता काफिला निकल पडा . दाऊ को अब कुछ नहीं दिख रहा था , दूर तलक

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